Sunday, October 16, 2011

आज सुबह की रौशनी...

आज सुबह की रौशनी, कुछ बे-बाक, कुछ पाक सी है,
पत्तियों पर ओस की बूँद, कुछ नम, कुछ साफ़ सी है,
सूरज की रौशनी, छूने लगी मन की गहराईयों को,
ठंडी मुस्कुराती हवा, बालों में छेड़ने लगी नर्माइयों को,
अठखेलियाँ करती तितलियाँ, भवरों से अलग,
चेहचाहती सुरधावानियाँ, बागों से अलग,
फूलों के बाग़ में, यूँ छायी सी है,
आज सूरज की रौशनी, संग कुछ नयी तपिश लायी सी है,
सुबह की रौशनी. कुछ नर्म, कुछ पाक सी है,
पत्तियों पर ओस की बूँदें, कुछ नम, कुछ साफ़ सी है...

Saturday, October 15, 2011

वो 413 और उसकी धुंधली यादें...

वो 413 और उसकी धुंधली यादें,
ऊँगली में चोट उनके, मेरी आँखों में सौ बातें,
इशारों में पुछा, क्यूँ यह हाल है,
आँखों में जवाब आया, दिल में क्यूँ यह सवाल है,
फिर अचानक खो गए वो दिन, धुंधली हो गयी यादें,
अब न आँखों में आँखें है, न इशारों में बातें,
वो 413 और उनकी धुंधली यादें,
अब न ऊँगली में चोट है, न आँखों में सौ बातें...

Thursday, October 13, 2011

आज फिर उनसे मुलाकात हो गयी...

आज फिर उनसे मुलाकात हो गयी,
आँखों-आँखों में जाने कितनी बात हो गयी,
होंठ न उनके हिले, न हम कुछ कह सके,
फिर क्यूँ आँखों में यूँ बरसात हो गयी...
तनहा खड़े देखते रहे, भीड़ में खोते उन्हें,
लम्हा थमाते रहे, आँख से ओझल होते उन्हें,
अश्कों के जैसे, लफ़्ज़ों की बरसात हो गयी,
आँखों-आँखों में जाने कितनी बात हो गयी,
जाते-जाते भी, मुड़ कर देखना न भूले वो,
दूर जाते-जाते भी, फिर मिलना कहना न भूले वो,
होंठ न उनके हिले, न हम कुछ कह सके,
फिर क्यूँ आँखों में यूँ बरसात हो गयी,
आज फिर उनसे मुलाकात हो गयी,
आँखों-आँखों में जाने कितनी बात हो गयी...

Wednesday, October 12, 2011

तेरे बिन बुरे से थोड़े कम है...

हाँ! नदी तू, किनारा तेरा हम है,
तेरे बिना बेसहारा जैसे हम है,
तेरे बिन गुज़ारे कैसे दिन है,
तेरे बिन बुरे से थोड़े कम है...
साथ तेरे मुस्कान जैसे हम है,
आँखों की रौशनी में, काजल की शान जैसे हम है,
होंठों पर हलकी सुर्ख़ियों में, लाल जैसे हम है,
आईने में झिल-मिल अक्स की शान जैसे हम है,
हाँ! तेरे बिन बेसहारा जैसे हम है,
तेरे बिन बुरे से थोड़े कम है...

Tuesday, October 11, 2011

कितना मुश्किल था कहना...

कितना मुश्किल था कहना, कि खुश हूँ तेरे बिना,
जबकि, दिल रोता रहा तेरे बिना,
हँसता रहा, दिल के दर्द को छुपा कर,
तनहा मैं खड़ा, तेरे बिना,
हाँ! कह दिया मुस्कुरा कर, तेरी ख़ुशी के खातिर,
पर तुम यह न समझोगी, कितना तनहा हूँ तेरे बिना...

फितूर अच्छा है दिल लगाने को...

फितूर अच्छा है दिल लगाने को,
हिम्मत अब नहीं किस्मत आजमाने को,
उम्र का पड़ाव, कहीं घुटन न बन जाए मेरे अन्दर,
इसलिए, कलम उठा लेता हूँ दिल लगाने को...
लफ्ज़ न हो मुख़ातिब, दिल की आहों को कलम से मिलाने को,
वक़्त न हो मुनासिब, दिल-इ-हसरत बताने को,
हिम्मत अब नहीं बाकी किस्मत आजमाने को,
यह दिल्लगी का फितूर अच्छा है, दिल लगाने को...

Monday, October 10, 2011

ज़िन्दगी में और भी गम है बताने को...

ज़िन्दगी में और भी गम है बताने को,
और भी ठोकरें लगेंगी, किस्मत आजमाने को,
मैं हार मान, बैठ गया था राहों में कहीं,
पर ज़िन्दगी रुकी नहीं, दिल लगाने को...
हाँ! तेरे आने से वक़्त थम गया था, तेरे आस-पास,
पर, ज़ज्बात पिघलते रहे, दिल-इ-हसरत बताने को,
हाँ! हार मान बैठ गया था राहों में कहीं,
पर ज़िन्दगी रुकी नहीं, दिल लगाने को.
और भी ठोकरें लगेंगी, किस्मत आजमाने को,
ज़िन्दगी में और भी गम है बताने को...

तेरी जैसी मिठास नहीं होती...

दोस्ती अगर पहचान होती, तो क्या बात होती,
बड़ो की दोस्ती में, बचपन के जैसे मुस्कान होती, तो क्या बात होती,
कहने को तो हर राह में एक दोस्त बना लेते है,
मगर सबकी दोस्ती में तेरी जैसी मिठास नहीं होती...

Tuesday, October 4, 2011

एक और दिन ढल गया, एक और रात हो गयी...

एक और दिन ढल गया, एक और रात हो गयी,
तुमसे कहने-सुनने की, आँखों में बात हो गयी,
दिल की हसरतों का भवर, यूँ उठा,
कि दिल के साहिल पर बैठे, आशिक से मुलाकात हो गयी,
एक और दिन ढल गया, एक और रात हो गयी,
तुमसे कहने-सुनने की, आँखों में बात हो गयी...
होसला मेरे लफ़्ज़ों का, दरिया की गहराईयों सा था,
नशा तेरे प्यार का, चाँद की रुसवाइयों सा था,
ख़्वाबों में तुझसे, कल मुलाकात हो गयी,
एक और दिन ढल गया, एक और रात हो गयी,
दिल के साहिल पर बैठे, खुद के आशिक से मुलाकात हो गयी...

सांसें क्यूँ पेश्तर तेज़ चलती है...

क्यूँ बोझ सी लगने लगी है ज़िन्दगी, सांसें भी पेश्तर तेज़ चलती है,
लफ्ज़ मुनासिब नहीं मिलते मुझको, हसरतें फिर क्यूँ मचलती है,
भूलने की कोशिश में रात-दिन बोझिल है सांसें, दिल के नासूरों को,
फिर क्यूँ तेरी यादें, चेहरे पर पिघलती है,
भूल जाना चाहता है दिल, दर्द की उन यादों को,
मुस्कुराना चाहता है दिल, याद कर, तेरी हँसीं की बातों को,
फिर क्यूँ लफ्ज़ मुनासिब नहीं मिलते मुझको, हसरतें फिर क्यूँ मचलती है,
क्यूँ बोझ सी लगने लगी है ज़िन्दगी, सांसें क्यूँ पेश्तर तेज़ चलती है...

एक गुनाह सा लगने लगा, गुफ्तुगू करना अब तो...

वक़्त बदल गया, हर अलफ़ाज़ बदल गया,
उनके कहने, सुनने का साज़ बदल गया,
एक गुनाह सा लगने लगा, गुफ्तुगू करना अब तो,
जाने क्यूँ यूँ वक़्त का लिबास बदल गया,
हर लफ्ज़, जो कभी नशे के काबिल था,
हर शाम, जो कभी जाम सी काबिल थी,
आज न जाने क्यूँ, सारा आलम बदल गया,
जाने क्यूँ यूँ वक़्त का लिबास बदल गया...
था मुनासिब पहले भी, दिल की हसरतों को रोकना,
तो न जाने आज फिर, दिल की हसरतों का उबाल बदल गया,
एक गुनाह सा लगने लगा है, गुफ्तुगू करना अब तो,
जाने क्यूँ ऐसा वक़्त का लिबास बदल गया,
वक़्त बदल गया, हर अलफ़ाज़ बदल गया,
उनके कहने, सुनने का हर साज़ बदल गया,
हर लफ्ज़, जो नशे के काबिल था,
आज वो लफ़्ज़ों का, लिबास बदल गया...