Tuesday, October 4, 2011

सांसें क्यूँ पेश्तर तेज़ चलती है...

क्यूँ बोझ सी लगने लगी है ज़िन्दगी, सांसें भी पेश्तर तेज़ चलती है,
लफ्ज़ मुनासिब नहीं मिलते मुझको, हसरतें फिर क्यूँ मचलती है,
भूलने की कोशिश में रात-दिन बोझिल है सांसें, दिल के नासूरों को,
फिर क्यूँ तेरी यादें, चेहरे पर पिघलती है,
भूल जाना चाहता है दिल, दर्द की उन यादों को,
मुस्कुराना चाहता है दिल, याद कर, तेरी हँसीं की बातों को,
फिर क्यूँ लफ्ज़ मुनासिब नहीं मिलते मुझको, हसरतें फिर क्यूँ मचलती है,
क्यूँ बोझ सी लगने लगी है ज़िन्दगी, सांसें क्यूँ पेश्तर तेज़ चलती है...

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