लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Monday, October 10, 2011
तेरी जैसी मिठास नहीं होती...
दोस्ती अगर पहचान होती, तो क्या बात होती,
बड़ो की दोस्ती में, बचपन के जैसे मुस्कान होती, तो क्या बात होती,
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