Thursday, December 29, 2011

उनके गम में इस कदर डूबे...

उनके गम में इस कदर डूबे की ज़िन्दगी वीरान लगने लगी,
घर मकान बन गए, कब सुबह, कब शाम ढलने लगी,
दिन तो गुज़र जाता था, भीड़ की तन्हाइयों में,
पर रात न-गुज़र थी मुनासिब, यादों की परछाइयों में,
हमसफ़र जो थे, क्यूँ राह में सफ़र कर गए,
हम तो साथ चलते रहे, क्यूँ राह अनजान कर गए,
लद गए वो सुहाने दिन, धुंधली पड़ गयी सुखभरी रातें,
अब तो तनहा तकिया है, और कुछ गीली यादें,
उनके गम में इस कदर डूबे कि ज़िन्दगी वीरान लगने लगी,
घर मकान बन गए, कब सुबह, कब शाम ढलने लगी...

Wednesday, December 28, 2011

मैं भूल चला था लफ़्ज़ों को...

मैं भूल चला था लफ़्ज़ों को, जिनसे थी पहचान कभी,
राह में तनहा खो चला था, जो मुझसे थी अनजान सभी,
मैं तनहा था यादों में खोया,
रातों को जगता, दिन में था सोया,
राह में चलते-चलतें, जाने क्या पाया, क्या खोया,
मैली-कुचली काया में, कभी हँसता, कभी रोया,
कागज़ की ज़मीनों पर लिखता, पर दिल की दीवारें थी वीरान वही,
मैं भूल चला था लफ़्ज़ों को, जिनसे थी मेरी पहचान कभी,
राह में तनहा खो चला था, जो मुझसे थी अनजान सभी...
यादों के लहराते बादल, क्यूँ, सब तेरी याद दिलाते थे,
बंज़र धरती, सूखे पत्ते, सब तेरी बात बताते थे,
धुल की आंधी में खो कर भी, बनी रही पहचान वही,
लौट जो आया तो देखा, मेरे लफ़्ज़ों की पहचान नयी,
मैं भूल चला था लफ़्ज़ों को, जिनसे थे पहचान कभी,
राह में तनहा खो चला था, जो मुझसे थी अनजान सभी...

Monday, December 26, 2011

बे-मतलब ज़िन्दगी...

बे-मतलब ज़िन्दगी जिए जा रहा हूँ,
क्यूँ तनहा राहों पर यूँ बढे जा रहा हूँ,
कोई मुद्दा नहीं है ज़िन्दगी जीने का,
तो फिर क्यूँ ऐसे जिए जा रहा हूँ...
तनहाइयों और रुसवाइयों का सबब बन बैठा है, क्यूँ अक्स मेरा,
उलझे सवालों का सबब बन बैठा है, क्यूँ अक्स मेरा,
कोई मुद्दा नहीं है ज़िन्दगी जीने का,
तो फिर क्यूँ ऐसे जिए जा रहा हूँ,
बोझ सी बन पड़ी है ज़िन्दगी,
फिर क्यूँ बे-मतलब जिए जा रहा हूँ,
तनहा राहों पर आगे बढे जा रहा हूँ...

Thursday, December 22, 2011

तन गन्दा...

तन गन्दा, यह मन गन्दा,
जीवन का गुज़रा हर पल गन्दा,
गन्दी मेरी सोच, क्यूंकि गन्दा सबका कहना,
लोगों से सीख कर जाना, दर्द को यूँ सहना,
झूठ, घूस, बेमानी के गुण मुझमे यूँ डाले,
अब मुझको क्यूँ कहते है, गम की तरह भुलाले,
मैं तो निश्छल था, पाक था, पानी की तरह,
क्यूँ घोला मुझमे ज़हर, खून में बेमानी की तरह,
अब न चाह कर भी मैं गन्दा हूँ,
सब देख कर भी मैं अँधा हूँ,
बन गयी, गन्दी मेरी सोच, क्यूंकि गन्दा सबका कहना,
लोगों से सीखा मैंने, दर्द को यूँ सहना,
तन गन्दा, यह मन गन्दा,
जीवन का गुज़रा हर पल गन्दा...

Tuesday, December 20, 2011

ज़िन्दगी इतनी बेरंग होगी...

ज़िन्दगी इतनी बेरंग होगी, सोचा न था,
ख़्वाबों का कारवां भी ऐसा सूना होगा, सोचा न था,
न सोचा था कि मेरे लफ़्ज़ों का दाएरा भी यूँ कम पड़ेगा,
ऐसा चला सूनेपन का जादू, सोचा न था,
होगी ज़िन्दगी में अरमानों को पाने की चाहत, सोचा न था,
यूँ ख़्वाबों का कारवां भी ऐसा सूना होगा, सोचा न था,
ज़िन्दगी इतनी बेरंग होती, सोचा न था,
यूँ चलेगा सूनेपन का जादू, सोचा न था...

Monday, December 19, 2011

बिगड़ गया हूँ मैं...

बिगड़ गया हूँ मैं,
जाने क्यूँ, अपनी ही राहों से बिछड़ गया हूँ मैं,
बे-मतलब, बे-ख्याल-इ-दिल क्यूँ लिखने लगा हूँ मैं,
शायद, अपनी लिखने की जात से बिछड़ गया हूँ मैं,
रोज़ कुछ न कुछ लिखता हूँ, बे-मतलब, बे-ताल,
रोज़ कहीं से आ जाते है, दिल में क्यूँ सवाल,
जाने कौन-कौन से लफ्ज़ बनाने लगा हूँ मैं,
शायद, अपनी लिखने की जात से बिछड़ गया हूँ मैं,
बस बे-मतलब, बे-ख्याल-इ-दिल लिखने लगा हूँ मैं,
जाने क्यूँ, अपनी ही राहों से बिछड़ गया हूँ मैं,
शायद, बिगड़ गया हूँ मैं...

Tuesday, December 13, 2011

जब रिश्तों में घुटन बढ़ जाए...

जब रिश्तों में घुटन बढ़ जाए तो रिश्ते तोड़ देना,
मुस्कुराकर अपनों से मुंह मोड़ लेना,
क्यूंकि दर्द उनके हिस्से आये, यह अच्छी बात नहीं,
इसलिए, खुद अपने क़दमों का मुंह मोड़ लेना,
जब रिश्तों में घुटन बढ़ जाए तो रिश्ते तोड़ लेना,
वो चेहरे की मुस्कराहट पर, अश्कों के मोती न अच्छे है,
कुछ हम भी सच्चे थे, कुछ वो भी अच्छे है,
उनसे बिछड़ने का दर्द, सिर्फ उनके हिस्से आये, यह अच्छी बात नहीं,
इसलिए, खुद अपने क़दमों का मुंह मोड़ लेना,
मुस्कुराकर अपनों से मुंह मोड़ लेना,
जब रिश्तों में घुटन बढ़ जाए तो मुस्कुराकर रिश्तों तोड़ देना...

Sunday, December 11, 2011

वो जो चेहरे पर झूठा चेहरा है...

वो जो चेहरे पर झूठा चेहरा है, उससे बदल जाने दे,
कहते है तेरे चाहने वाले, तेरी हसरतों में सवर जाने दे,
हम तो जिंदा है तेरे ख्यालों की वादियों में,
हमें जिंदा रहने दे, तेरी जुल्फों में घर बनाने दे,
वो जो चेहरे पर झूठा चेहरा है, उससे बदल जाने दे,
कहते है तेरे चाहने वाले, अपनी हसरतों में सवर जाने दे...

Wednesday, December 7, 2011

छट गए सारे बदरा...

छट गए सारे बदरा, अंधियारे की छाव आ गयी,
कुछ बूँदें तन पर गिरी, मेरे अश्कों में समां गयी,
मैं जो खुल के यूँ रोया, जाने किस-किस सोच में,
न जाने कहाँ से, तेरी तस्वीर आँखों में आ गयी,
मैं दूर था तुझसे या खुद से, यह मालूम न था,
तू दूर थी मुझसे या मैं तुझसे, यह मालूम न था,
भीगता रहा तनहा, जाने क्यूँ बूँदें मुझमे समां गयी,
छट गए सारे बदरा, अंधियारे की छाव आ गयी...

अचानक...

क्यूँ दर्द सा बढ़ जाता है अचानक,
क्यूँ याद आता है बीता लम्हा अचानक,
मैं तो भूल चूका था तनहा तेरी यादों को,
फिर क्यूँ यूँ वापस आया है यह दर्द अचानक,
सोचते-सोचते, क्यूँ गम की गर्दिश में बात रह गयी अधूरी,
अश्क तकिये पर बिखरते रहे और रात रह गयी अधूरी,
खुद की नज़रों से नज़रें मिलाने की कोशिश जो की मैंने,
क्यूँ खुद की आँखों में बात रह गयी अधूरी...

Thursday, December 1, 2011

तुझे चाह कर भी...

एक फासला जो दरमियान है, क्यूँ काटता नहीं मगर,
मैं चाह कर भी तुझे पा न सकू, क्यूँ लगता है यह डर,
ख़्वाब तुम्हारे साथ क्यूँ चलते, जानूं न मगर,
तुझे चाह कर भी क्यूँ पा न सकू, क्यूँ लगता है यह डर...
साथ तुम्हारा, हर पल, हर लम्हा, रहता है मगर,
पास तुम हो कर, भी दूर हो जैसे, आता है नज़र,
सिर्फ एक झलक को, क्यूँ तरसे निगाहें, मैं जानूं न मगर,
एक फासला, जो दरमियान है, क्यूँ कटती नहीं डगर,
तुझे चाह कर भी क्यूँ पा न सकू, क्यूँ लगता है यह डर...