Wednesday, December 28, 2011

मैं भूल चला था लफ़्ज़ों को...

मैं भूल चला था लफ़्ज़ों को, जिनसे थी पहचान कभी,
राह में तनहा खो चला था, जो मुझसे थी अनजान सभी,
मैं तनहा था यादों में खोया,
रातों को जगता, दिन में था सोया,
राह में चलते-चलतें, जाने क्या पाया, क्या खोया,
मैली-कुचली काया में, कभी हँसता, कभी रोया,
कागज़ की ज़मीनों पर लिखता, पर दिल की दीवारें थी वीरान वही,
मैं भूल चला था लफ़्ज़ों को, जिनसे थी मेरी पहचान कभी,
राह में तनहा खो चला था, जो मुझसे थी अनजान सभी...
यादों के लहराते बादल, क्यूँ, सब तेरी याद दिलाते थे,
बंज़र धरती, सूखे पत्ते, सब तेरी बात बताते थे,
धुल की आंधी में खो कर भी, बनी रही पहचान वही,
लौट जो आया तो देखा, मेरे लफ़्ज़ों की पहचान नयी,
मैं भूल चला था लफ़्ज़ों को, जिनसे थे पहचान कभी,
राह में तनहा खो चला था, जो मुझसे थी अनजान सभी...

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