Monday, December 26, 2011

बे-मतलब ज़िन्दगी...

बे-मतलब ज़िन्दगी जिए जा रहा हूँ,
क्यूँ तनहा राहों पर यूँ बढे जा रहा हूँ,
कोई मुद्दा नहीं है ज़िन्दगी जीने का,
तो फिर क्यूँ ऐसे जिए जा रहा हूँ...
तनहाइयों और रुसवाइयों का सबब बन बैठा है, क्यूँ अक्स मेरा,
उलझे सवालों का सबब बन बैठा है, क्यूँ अक्स मेरा,
कोई मुद्दा नहीं है ज़िन्दगी जीने का,
तो फिर क्यूँ ऐसे जिए जा रहा हूँ,
बोझ सी बन पड़ी है ज़िन्दगी,
फिर क्यूँ बे-मतलब जिए जा रहा हूँ,
तनहा राहों पर आगे बढे जा रहा हूँ...

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