Thursday, December 22, 2011

तन गन्दा...

तन गन्दा, यह मन गन्दा,
जीवन का गुज़रा हर पल गन्दा,
गन्दी मेरी सोच, क्यूंकि गन्दा सबका कहना,
लोगों से सीख कर जाना, दर्द को यूँ सहना,
झूठ, घूस, बेमानी के गुण मुझमे यूँ डाले,
अब मुझको क्यूँ कहते है, गम की तरह भुलाले,
मैं तो निश्छल था, पाक था, पानी की तरह,
क्यूँ घोला मुझमे ज़हर, खून में बेमानी की तरह,
अब न चाह कर भी मैं गन्दा हूँ,
सब देख कर भी मैं अँधा हूँ,
बन गयी, गन्दी मेरी सोच, क्यूंकि गन्दा सबका कहना,
लोगों से सीखा मैंने, दर्द को यूँ सहना,
तन गन्दा, यह मन गन्दा,
जीवन का गुज़रा हर पल गन्दा...

No comments:

Post a Comment