Wednesday, November 30, 2011

सर्द है रातें, पर जल रहा हूँ मैं...

सर्द है रातें, पर जल रहा हूँ मैं,
यादों में तेरी, क्यूँ गल रहा हूँ मैं,
अधूरे ख़्वाबों का आसमान लिए, क्यूँ स्याह समुन्दर में पिघल रहा हूँ मैं,
क्यूँ तनहा यादों को, साथ लिए चल रहा हूँ मैं,
एक लम्बा फासला है जो, दूरी बन बैठा है अब,
कल वो रास्ते भी छोटे थे, जो मीलों लम्बे हो चुके है अब,
गुज़रता रोज़ हूँ, उन्ही गली, कूचे, दरवाजों से, जहाँ कल तुझको पाया था,
गुज़रता अब हूँ, उन्ही चौक, रास्ते, चोबारों से, जहाँ तनहा मेरा साया था,
एक रात लम्बी थी कभी, जो कटती नहीं थी दरमियान,
एक रात लम्बी है अभी, जो मिटती नहीं है दरमियान,
कुछ अधूरे ख़्वाबों का आसमान लिए, स्याह समुन्दर में पिघल रहा हूँ मैं,
क्यूँ तेरी तनहा यादों के साथ चल रहा हूँ मैं,
यादों में तेरी, क्यूँ गल रहा हूँ मैं,
सर्द है रातें, पर जल रहा हूँ मैं...

Wednesday, November 23, 2011

वो आये बैठे मेरे सिरहाने...

वो, आये बैठे सिरहाने, क्यूँ सांसें थम सी गयी,
वक़्त चलता रहा, क्यूँ बातें थम सी गयी,
काजल की दरकार में छुपाये, बैठे थे कुछ बातें,
नज़रें मिलते ही क्यूँ, बातें थम सी गयी,
कुछ कहने की आस में बैठे थे मेरे सिरहाने,
कुछ भी न कह कर, सारी बातें कह गयी,
वक़्त चलता रहा, फिर क्यूँ बातें थम सी गयी,
वो आये बैठे मेरे सिरहाने और सांसें थम सी गयी...
कभी देखते नज़रों के कोने सी, होंठों पर बुदबुदाहट और मुस्कान लिए,
पास बैठे रहे बहुत देर तक, अपनी एक पहचान लिए,
काजल के नीचे छुपाये थे कुछ बातें,
न जाने क्यूँ नज़रें मिलते ही, बातें थम सी गयी,
वो आये बैठे मेरे सिरहाने और मेरी सांसें थम सी गयी...

Tuesday, November 22, 2011

मय तो बस बहाना है...

मय तो बस बहाना है, हसरत-इ-दिल सुनना है,
जाम जो छलक भी जाए साकी, पैमाना, अंदाज़ से उठाना है,
लफ्ज़ बेशक बे-मतलब लगे, कुछ लिख जरूर जाना है,
मय तो बस बहाना है, हसरत-इ-दिल सुनना है...
गर! जो होश में होते साकी, सारा जहां छीन लेते,
गर! जो होश में होते साकी, उनकी आँखों से नशा छीन लेते,
जाम जो छलके साकी, पैमाना, फिर भी अंदाज़ से उठाना है,
मय तो बस बहाना है, हसरत-इ-दिल सुनना है...
होश में होकर भी बे-होश क्यूँ है लोग,
ज़िन्दगी की लत में उलझे क्यूँ है लोग,
सबकी आँखों से, नशे का परदा यूँ उठाना है,
मय तो बस बहाना है, हसरत-इ-दिल सुनना है...

Monday, November 21, 2011

दोस्त जान...

दोस्त जान, कलम दे दिया हांथों में,
पर देखते ही देखते, कलम से क़त्ल-इ-आम कर दिया,
सोचा किये, क्या गुनाह किया हमने,
जो खुद को बदनाम कर लिया,
अब लफ़्ज़ों का जनाज़ा लिए फिरते है हम, दर-ब-दर भटक,
और वो बड़े शौक से हमे, मय्यत में भी बदनाम करते है |

Friday, November 18, 2011

वो देखो आये, चौहान साहब हमारे...

वो देखो आये, चौहान साहब हमारे,
गाँव की कच्ची गलियों से, लाये बातों के पिटारे,
पतली काया, पतली छाया में जाने क्या-क्या समाया,
ख़्वाबों का पुलिंदा लिए, चलते साहब हमारे,
गाँव की कच्ची गलियों से, लाये बातों के पिटारे,
कभी लड़ते, कभी झगड़ते, रहते सारे दिन,
प्रवीण-प्रवीण की रट लगा कर, घुमे हर पलछिन,
धुन में खुद की रहते, यह साहब हमारे,
वो देखो आये, चौहान साहब हमारे,
मुकेश के गीतों के यह है फेन,
गीत बजा कर ले लेते चैन,
गौतम के प्यारे, सर के दुलारे है साहब हमारे,
वो देखो आये, चौहान साहब हमारे...

चौहान साब हमारे...

दूर गाँव से चल कर आये, चौहान साब हमारे,
पतली काया, पतले, चेहरे वाले, चौहान साब हमारे,
उत्तरांचली बोली, धूमिल छाया,
दिल्ली की गलियों में, क्या खोया, क्या पाया,
जाने, कौन-कौन सा ज्ञान छुपाये, बैठे साब हमारे,
पतली काया वाले, चौहान साब हमारे,
गेम-शेमे की दुनिया के, बेताज खिलाड़ी वो,
बातों ही बातों में, करतब दिखलाते वो,
नाराज़ न होते कभी, सदा मुस्कुराते वो,
बातों ही बातों में, खुद घुल से जाते वो,
अपनी ही काया में, खो जाते साब हमारे,
वो आये देखो, चौहान साब हमारे...

Wednesday, November 16, 2011

छंद कथन...

कलम उठा यूँ लिखने बैठा, जाने किस-किस सोच में,
क्या लिखूं, क्या न लिखूं, के ताने-बाने में बुन कर रह गया,
हाल-इ-हसरत, कलम-इ-जुर्रत, लफ़्ज़ों में क्यूँ घुल गया,
क्या लिखूं, क्या न लिखूं, के ताने-बाने में बुन कर रह गया...


लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...

Thursday, November 10, 2011

अच्छा लगता है...

लगता क्यूँ नहीं कुछ अच्छा, सब कुछ क्यूँ बेगाना लगता है,
सब-कुछ है पास परन्तु, कोशिश की एक आस जगाना अच्छा लगता है,
लोगों की भीड़ में खोकर भी, मुस्कुराना अच्छा लगता है,
आज तनहा हो, कलम उठाना अच्छा लगता है,
राह तनहा, हो अँधेरा, चलते जाना अच्छा लगता है,
लोगों की भीड़ में खोकर भी, मुस्कुराना अच्छा लगता है...

Wednesday, November 2, 2011

हश्र मेरे अरमानों का...

हश्र मेरे अरमानों का, कुछ यूँ हुआ इस तरह,
कि मुस्कराहट-मुस्कराहट में, दिल निसार हो गया,
मैं तनहा बैठा सोच में, लफ़्ज़ों का तलबगार हो गया,
तनहा चाँद, तनहा रात, क्यूँ तन्हाई का शिकार हो गया,
हश्र मेरे अरमानों का, कुछ यूँ हुआ इस तरह,
कि मुस्कराहट-मुस्कराहट में, दिल निसार हो गया...

करतब-इ-दिल...

करतब-इ-दिल, हाल-इ-बयान, मुज्ज़स्सल हो गया,
सोचा था खुदा और क्या बयान हो गया,
शायरी का खुमार यूँ जागा, हाल-इ-दिल गुलज़ार हो गया,
सोचा था खुदा और क्या बयान हो गया,
नरगिसी आँखों का मंज़र यूँ छाया, कि मय का तलबगार हो गया,
आँखों में जो खोया, खुद की चाहत से पार हो गया,
सोचा था खुदा और हाल-इ-दिल बयान हो गया,
करतब-इ-दिल, हाल-इ-बयान, मुज्ज़स्सल हो गया...

फिर क्यूँ तू भगवान् है...

तू पत्थर की मूरत है, फिर क्यूँ तू बलवान है,
न जीवन, न मृत्यु, फिर क्यूँ तू भगवान् है,
कभी अच्छा, कभी बुरा, क्यूँ तेरी ऐसी काया है,
न तू अच्छा, न मैं अच्छा, फिर क्यूँ ऐसी यह माया है,
तू पत्थर की मूरत है, फिर क्यूँ तू बलवान है,
न जीवन, न मृत्यु, फिर क्यूँ तू भगवान् है,
बन अघोरी वन में मैंने, जो यूँ बरसों तप किया,
बन एक ढोंगी, वन में मुझसे, क्यूँ यूँ मेरा जप लिया,
मांगे जो वरदान यूँ मैंने, मैला-कुचला तन दिया,
कह मुझको मानव, श्रेष्ठ रचना, मैला-कुचला तन दिया,
तू पत्थर की मूरत है, फिर क्यूँ तू बलवान है,
न जीवन, न मृत्यु, फिर क्यूँ तू भगवान् है...