Sunday, March 31, 2013

ख्वाहिशें...

ख्वाहिशों की सीढियाँ चढ़,
हसरतों की खिड़की से झांकती उमीदों के बूते,
मैंने एक राह चुन ली,
कुछ अरमां दिल के कहे
कुछ उनके दिल के सुने,
और मैंने एक चाह चुन ली ।

क्यूँ न एक दौर अजमाया जाए,
लफ़्ज़ों को पुरजोर अजमाया जाए,
कुछ लय बने, कुछ तराने,
क्यूँ न एक बार और अजमाया जाए ।

Friday, March 29, 2013

दिल-ए-हसरत...

दिल-ए-हसरत, दिल-ए-उल्फ़त का तराना,
कल रात तकिये पर गुज़रा ज़माना,
वाकिफ़ था दिल टूटने के हालात से,
पर कल जो गुज़रा, तो गुज़रा ज़माना ।

मेरी परेशानियों का सबब तू,
मेरी निगेबानियों का सबब तू,
तू और तेरी जुत्सुजू,
मुझ में है तू, तो जिंदा हूँ ।

एक सफ़र ऐसा भी गुज़रा कोई सफ़र-ग़र न मिला,
मैं, चलता रहा राह-ए-राहत-सिलसिले, जो गुज़रा वो मंज़र न मिला ।

Wednesday, March 27, 2013

उम्मीद...

कितनी ख्वाहिशें जी मैंने,
कितनी हसरतें पी मैंने,
पर लिख न सका वो हसरत-ए-दिल नादान ।

बड़ी सरगोशी से थामी कलम-ए-आरज़ू,
शिद्दत से उकेरी संगेमरमर पर,
कहने को मैले कागज़ के टुकड़े थे,
जिन्हें, सजाया भीगी हसरतों से,
पर लिख न सका वो हसरत-ए-दिल नादान ।।

लोगों की उम्मीद जगने लगी,
कुछ महफ़िलें मेरे नाम पर सजने लगी,
दौर-ए-जाम भी उठाये मेरे नाम पर,
शायर का दर्जा दिया बे-नाम पर,
पर लिख न सका हसरत-ए-दिल नादान ।

कितनी ख्वाहिशें जी मैंने,
कितनी हसरतें पी मैंने,
पर लिख न सका वो हसरत-ए-दिल नादान ।।

Tuesday, March 26, 2013

होली...

रंगों की फुहार,
मौज-बहार,
सब हो जाओ तैयार,
आया रंगों का तौहार,
छेड़ो खुशियों की बयार,
मनाओ, मिल कर सब तौहार ।

Friday, March 22, 2013

हमने भी तराने लिखे...

हमने भी तराने लिखे,
गौर-ए-तलब ज़माने लिखे,
लिखना, दिल-ए-हसरत चाही,
कहना, दिल-ए-उल्फ़त चाही,
और तेरी जुत्सुजू के नज़राने लिखे,
हमने भी तराने लिखे ।

कभी आयते लिखी, कभी कुराने लिखी,
अभिनव (नयी) कसौटी पर कई ज़माने लिखे,
लोगों ने नज़्म लिखी, और हमने, जाम और मयखाने लिखे,
गौर-ए-तलब ज़माने लिखे,
लिखना, दिल-ए-हसरत चाही,
कहना, दिल-ए-उल्फ़त चाही,
और तेरी जुत्सुजू के नज़राने लिखे,
हमने भी तराने लिखे ।।

Wednesday, March 20, 2013

आज, बहुत रोज़ बाद...
















आज, बहुत रोज़ बाद, होंठ कापते से पाए मैंने,
दिल में गुबार उठा था, लफ्ज़ नज़र न पाए मैंने,
क्या कहता तुझसे, इस असमंजस में था दिल,
कहना बहुत कुछ था, पांव ज़मीं से गए थे हिल,
यादें के साए, जो घर कर आये,
तनहा यादें समेटे, मैली चादर ले आये,
दिल में गुबार उठा था, लफ्ज़ नज़र न पाए मैंने,
आज, बहुत रोज़ बाद, होंठ कापते से पाए मैंने ।

शक का कोई शुबा न था,
फिर भी किया मैंने,
तुझसे दूर होता जान,
फिर से जिया मैंने,
वो फीकी पड़ती आवाज़,
और चीखते सवालों को सिला मैंने,
शक का कोई शुबा न था,
फिर भी किया मैंने,
क्या कहता तुझसे, इस असमंजस में था दिल,
कहना बहुत कुछ था, पांव ज़मीं से गए थे हिल,
दिल में गुबार उठा था, लफ्ज़ नज़र न पाए मैंने,
आज, बहुत रोज़ बाद, होंठ कापते से पाए मैंने ।।

पिघले अरमां...

पिघले नीलम से पिघले अरमां,
सुलगते लम्हों में सिमट कर रह गए,
कुछ सांसें तनहा थी,
कुछ हम खुद की आहों में सिमट कर रह गए ।

मुद्दतों तरसे जिस आरज़ू-ए-इश्क़ को,
वो (खुदा) जो मिला तो उम्र ही गुज़र गयी ।

वाकिफ़ खुद भी थे आदत-ए-इश्क़ से अपनी,
आज बेवफ़ाई का उनसे ख़्याल आ गया ।

ता-उम्र जिए साथ, पर दिल में उनके घर कर न सके,
अब तो दूजों के जाने से उनकी सांसें थमा करती है ।

Friday, March 15, 2013

ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है...

















दिल-ए-दर्द को बाखूबी सजाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है,
दर्द की सिरहन रूह में छुपाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है,
मुद्दतों की तमन्ना को कुचल, चलते जाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है ।

ख्वाहिशों की कश्ती का किनारा ढूंढते ढूंढते,
कल के सूरज पर सितारा ढूंढते-ढूंढते,
लफ़्ज़ों की जात में घुलते जाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है ।।

मुफलिसी का जाम ओढ़े, कलमों को कुछ यूँ मरोड़े,
चलते जाते है लोग,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है,
दिल-ए-दर्द को बाखूबी सजाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है ।।।

तलबगार...

वाह वाही के तासीर नहीं, ईमान के तलबगार है,
पलट-वार का सिलसिला नहीं, हम शायर यार है,
कभी कुछ लिख देते है अभिनव, लफ्ज़ बे-शुमार है,
वाह वाही के तासीर नहीं, ईमान के तलबगार है ।

लफ्ज़ मिला कर जहान बना लो,
भर कर सारे ताज सजा लो,
मान मेरे लफ़्ज़ों का पा लो,
लिख कर सारे राज़ छुपा लो,
ये पलट-वार का सिलसिला नहीं, हम शायर यार है,
वाह वाही के तासीर नहीं, ईमान के तलबगार है ।।

Wednesday, March 13, 2013

सवाल नहीं उठते...

आज कल ज़ेहन में ख़्याल नहीं उठते,
तन्हाई में उलझे सवाल नहीं उठते,
कदम बढ़ते है मगर, ख़्याल नहीं उठते,
आज-कल ज़ेहन में सवाल नहीं उठते ।

तन्हाई का तस्सवुर छाया रहता है,
कोई मातम सा गहराया रहता है,
हसरतें भी तनहा रहती है,
रंगीनियत पर सूखा सा छाया रहता है,
कलम पकड़ता हूँ तो ख़्याल नहीं उठते,
तन्हाई से लिपटे सवाल नहीं उठते,
आज कल ज़ेहन में ख़्याल नहीं उठते ।।