Wednesday, March 20, 2013

आज, बहुत रोज़ बाद...
















आज, बहुत रोज़ बाद, होंठ कापते से पाए मैंने,
दिल में गुबार उठा था, लफ्ज़ नज़र न पाए मैंने,
क्या कहता तुझसे, इस असमंजस में था दिल,
कहना बहुत कुछ था, पांव ज़मीं से गए थे हिल,
यादें के साए, जो घर कर आये,
तनहा यादें समेटे, मैली चादर ले आये,
दिल में गुबार उठा था, लफ्ज़ नज़र न पाए मैंने,
आज, बहुत रोज़ बाद, होंठ कापते से पाए मैंने ।

शक का कोई शुबा न था,
फिर भी किया मैंने,
तुझसे दूर होता जान,
फिर से जिया मैंने,
वो फीकी पड़ती आवाज़,
और चीखते सवालों को सिला मैंने,
शक का कोई शुबा न था,
फिर भी किया मैंने,
क्या कहता तुझसे, इस असमंजस में था दिल,
कहना बहुत कुछ था, पांव ज़मीं से गए थे हिल,
दिल में गुबार उठा था, लफ्ज़ नज़र न पाए मैंने,
आज, बहुत रोज़ बाद, होंठ कापते से पाए मैंने ।।

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