ख्वाहिशों की सीढियाँ चढ़,
हसरतों की खिड़की से झांकती उमीदों के बूते,
मैंने एक राह चुन ली,
कुछ अरमां दिल के कहे
कुछ उनके दिल के सुने,
और मैंने एक चाह चुन ली ।
क्यूँ न एक दौर अजमाया जाए,
लफ़्ज़ों को पुरजोर अजमाया जाए,
कुछ लय बने, कुछ तराने,
क्यूँ न एक बार और अजमाया जाए ।
हसरतों की खिड़की से झांकती उमीदों के बूते,
मैंने एक राह चुन ली,
कुछ अरमां दिल के कहे
कुछ उनके दिल के सुने,
और मैंने एक चाह चुन ली ।
क्यूँ न एक दौर अजमाया जाए,
लफ़्ज़ों को पुरजोर अजमाया जाए,
कुछ लय बने, कुछ तराने,
क्यूँ न एक बार और अजमाया जाए ।
No comments:
Post a Comment