Friday, March 29, 2013

दिल-ए-हसरत...

दिल-ए-हसरत, दिल-ए-उल्फ़त का तराना,
कल रात तकिये पर गुज़रा ज़माना,
वाकिफ़ था दिल टूटने के हालात से,
पर कल जो गुज़रा, तो गुज़रा ज़माना ।

मेरी परेशानियों का सबब तू,
मेरी निगेबानियों का सबब तू,
तू और तेरी जुत्सुजू,
मुझ में है तू, तो जिंदा हूँ ।

एक सफ़र ऐसा भी गुज़रा कोई सफ़र-ग़र न मिला,
मैं, चलता रहा राह-ए-राहत-सिलसिले, जो गुज़रा वो मंज़र न मिला ।

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