पिघले नीलम से पिघले अरमां,
कुछ सांसें तनहा थी,
कुछ हम खुद की आहों में सिमट कर रह गए ।
मुद्दतों तरसे जिस आरज़ू-ए-इश्क़ को,
वो (खुदा) जो मिला तो उम्र ही गुज़र गयी ।
वाकिफ़ खुद भी थे आदत-ए-इश्क़ से अपनी,
आज बेवफ़ाई का उनसे ख़्याल आ गया ।
ता-उम्र जिए साथ, पर दिल में उनके घर कर न सके,
अब तो दूजों के जाने से उनकी सांसें थमा करती है ।
No comments:
Post a Comment