आज कल ज़ेहन में ख़्याल नहीं उठते,
तन्हाई में उलझे सवाल नहीं उठते,
कदम बढ़ते है मगर, ख़्याल नहीं उठते,
आज-कल ज़ेहन में सवाल नहीं उठते ।
तन्हाई का तस्सवुर छाया रहता है,
कोई मातम सा गहराया रहता है,
हसरतें भी तनहा रहती है,
रंगीनियत पर सूखा सा छाया रहता है,
कलम पकड़ता हूँ तो ख़्याल नहीं उठते,
तन्हाई से लिपटे सवाल नहीं उठते,
आज कल ज़ेहन में ख़्याल नहीं उठते ।।
तन्हाई में उलझे सवाल नहीं उठते,
कदम बढ़ते है मगर, ख़्याल नहीं उठते,
आज-कल ज़ेहन में सवाल नहीं उठते ।
तन्हाई का तस्सवुर छाया रहता है,
कोई मातम सा गहराया रहता है,
हसरतें भी तनहा रहती है,
रंगीनियत पर सूखा सा छाया रहता है,
कलम पकड़ता हूँ तो ख़्याल नहीं उठते,
तन्हाई से लिपटे सवाल नहीं उठते,
आज कल ज़ेहन में ख़्याल नहीं उठते ।।
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