Friday, March 15, 2013

ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है...

















दिल-ए-दर्द को बाखूबी सजाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है,
दर्द की सिरहन रूह में छुपाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है,
मुद्दतों की तमन्ना को कुचल, चलते जाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है ।

ख्वाहिशों की कश्ती का किनारा ढूंढते ढूंढते,
कल के सूरज पर सितारा ढूंढते-ढूंढते,
लफ़्ज़ों की जात में घुलते जाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है ।।

मुफलिसी का जाम ओढ़े, कलमों को कुछ यूँ मरोड़े,
चलते जाते है लोग,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है,
दिल-ए-दर्द को बाखूबी सजाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है ।।।

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