रात जागता रहा,
सुबह की राह ताकता रहा,
लड़ता रहा साँसों से मैं,
और सूरज की राह ताकता रहा,
रात जागता रहा ।
भोर की पहली किरण,
मन की दीवारों पर पड़ने लगी,
देखते ही देखते,
सांसें शोर करने लगी,
सुर्ख़ थी आँखें,
और मैं दीवारों में अक्स ताकता रहा,
लड़ता रहा साँसों से मैं,
और सूरज की राह ताकता रहा,
रात जागता रहा ।।
दम तोड़ने लगा था जिस्म,
अंत था कैसा और किस किस्म,
मैं, बदलते वक़्त और मौसम में झांकता रहा,
वो आगे चलता रहा और मैं पीछे ताकता रहा,
सुर्ख़ थी आँखें,
और मैं दीवारों में अक्स ताकता रहा,
लड़ता रहा साँसों से मैं,
और सूरज की राह ताकता रहा,
रात जागता रहा ।।।
सुबह की राह ताकता रहा,
लड़ता रहा साँसों से मैं,
और सूरज की राह ताकता रहा,
रात जागता रहा ।
भोर की पहली किरण,
मन की दीवारों पर पड़ने लगी,
देखते ही देखते,
सांसें शोर करने लगी,
सुर्ख़ थी आँखें,
और मैं दीवारों में अक्स ताकता रहा,
लड़ता रहा साँसों से मैं,
और सूरज की राह ताकता रहा,
रात जागता रहा ।।
दम तोड़ने लगा था जिस्म,
अंत था कैसा और किस किस्म,
मैं, बदलते वक़्त और मौसम में झांकता रहा,
वो आगे चलता रहा और मैं पीछे ताकता रहा,
सुर्ख़ थी आँखें,
और मैं दीवारों में अक्स ताकता रहा,
लड़ता रहा साँसों से मैं,
और सूरज की राह ताकता रहा,
रात जागता रहा ।।।
No comments:
Post a Comment