Monday, May 16, 2011

कौन हूँ मैं? एक आम आदमी...

कौन हूँ मैं? एक आम आदमी,
गुमनामी की काली अंधियारी रातों में भटकता, एक आम आदमी,
लोगो की भीड़ में, एक नए अहम् की तलाश करता, एक आम आदमी,
जाने-पहचाने चेहरों के बीच में भी अनजान रहता, आम आदमी,
सड़कों पर होते खून और बलात्कारों को होते देख भी आँखे मूँद लेता, आम आदमी,
गमों और गुनाहों से अपनी गर्दन बचाता, आम आदमी,
अन्याय को बढते देख बस खुद के ज़हन से लड़ता, आम आदमी,
अपने ही परिवेश में खुद को नज़रबंद देखता, आम आदमी,
खुद को बेबस, लाचार और अपांग मान लेता, आम आदमी,
फिर भी अंदर ही अंदर सुलगता रहता, आम आदमी,
पर फिर भी खुद से सवाल करता, आम आदमी,
कौन हूँ मैं? एक आम आदमी...

No comments:

Post a Comment