Friday, May 27, 2011

कहने को वो जननी है...

कहने को वो जननी है, श्रष्टि की सूत्रधार है वो,
परन्तु फिर भी हर सुख से वंचित है, हर ख़ुशी से निर-आधार है वो,
कभी माँ, कभी बहन, कभी बेटी तो कभी सखी-सहेली है वो,
फिर भी हर सुख से वंचित, निर-आधार है वो,
कहने को तो दर्जे बहुत दिए है उससे, फिर क्यूँ उसका आँचल हमने मैला ही देखा है,
कहने को तो आज़ाद है, स्वछन्द नील गगन में, फिर क्यूँ बंदिशों और मरियादाओ का पहरे है,
निर्मल और कोमल मान, बाँध दिया उससे चार दीवारों में,
पर फिर क्यूँ हम भूल गए, कि यही तो महिषासुर रुपी दुखो की संघारक है वो,
कहने को तो जननी है, श्रष्टि कि सूत्रधार है वो,
परन्तु फिर भी हर सुख से वंचित है, हर ख़ुशी से निर-आधार है वो...

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