लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Thursday, May 26, 2011
जरूरी नहीं ग़ालिब...
जरूरी नहीं ग़ालिब कि मै (शराब) पी कर ही मज़ा आता है,
मै तो वो नूर है, जो अश्कों के सहारे जिया जाता है,
हम तो वो ज़र्रा है, जो आफ़ताब के दिल में सुलगा करते है,
जाम जो हांथों में लिया करते है, उन्हें होंठों से नहीं, आँखों से पिया करते है...
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