Monday, May 30, 2011

लड़खड़ाने लगे मेरे कदम...

लड़खड़ाने लगे मेरे कदम, खुद-ब-खुद यूँ ही,
नशा शराब का था, या था बस यूँ ही,
क्यूँ बहक जाते है कदम, दो जाम पैमानों के बाद,
संभलते नहीं अरमान, कुचले मैले से,
आंसुओ के साथ, बिखर जाते है यूँ ही,
कुछ तो बात है इस "मैय" में, जो पत्थर की तरह पिघल जाते है हम,
दिल के अरमान निकलने लगते है और लोग कहते है कि बहक जाते है हम,
एक सुरूर सा छा जाता है, नशा बन कर यूँ ही,
लड़खड़ाने लगते है कदम, खुद-ब-खुद यूँ ही,
मैं ये सोचता हूँ कि यह नशा शराब का है, या है बस यूँ ही...

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