Sunday, July 31, 2011

समय के पहियों पर चलता मानुष...

मैं रुक नहीं सकता राहों में, निरंतर बढ़ना मेरा काम है,
समय के पहियों पर चलता मानुष, मुझसे ही बनाम है,
आदिम जो खोया था खुद अपनी ही नज़रों में कहीं,
उस आदिम से मुझे कुछ वक़्त-इ-काम है,
समय के पहियों पर चलता मानुष, मुझसे ही बनाम है,
वक़्त की आंधी में दौड़ता मानुष, रिश्तों की भीड़ में खोता मानुष,
मुझसे (वक़्त) क्यूँ न बलवान है,
मैं रुक नहीं सकता राहों में, निरंतर बढ़ना मेरा काम है,
समय के पहियों पर चलता मानुष, मुझसे ही बनाम है |

यादें क्यूँ तनहा जाती नहीं...

क्यूँ याद करते है हम लोगो को, 
क्यूँ यादों को तनहा छोड़ पाते नहीं,
लोग ओझिल हो जाते है नज़रों से,
फिर यादें क्यूँ तनहा जाती नहीं,
यादों का बसेरा क्यूँ घर कर जाता है दिलों पर,
ख़्वाबों का सवेरा क्यूँ बसर जाता है लबों पर,
क्यूँ यादों में ख़्वाबों के सवाल है,
क्यूँ उलझे यह ख्याल है,
लोग ओझिल हो जाते है नज़रों से,
फिर यादें क्यूँ तनहा जाती नहीं,
याद करते है हम लोगो को,
क्यूँ लोगो को याद आते नहीं...

ये तू है, तेरी जुत्सुजू है...

ये तू है, तेरी जुत्सुजू है या फिर तेरे होने का एहसास है,
आज क्यूँ न जाने, लगती हर चीज़ कुछ ख़ास है,
तेरी मोजूदगी बावस्ता थी, मेरे ही अन्दर कहीं,
तेरे आ जाने से बस वाकिफ यह ख़्याल है,
क्यूँ, तेरे आने से दिल की रंगीनियत बदल गयी,
क्यूँ, तेरे आने से चेहरे की मासूमियत बदल गयी,
तेरी मोजूदगी बावस्ता थी, मेरे ही अन्दर कहीं,
तेरे आ जाने से बस वाकिफ यह ख़्याल है,
ये तू है, तेरी जुत्सुजू है या तेरे होने का बस बे-मतलब ख़्याल है |

Friday, July 22, 2011

सोचा न था ज़िन्दगी...

सोचा न था ज़िन्दगी इतनी खुश-नसीबी से मिलेगी मुझसे,
सोचा न था खुशिया इतनी करीबी से मिलेगी तुझसे,
हर पल चहकता तेरा चेहरा ही तो मेरी जान है,
सोचा न था इतनी खुशियाँ मिलेगी मुझसे...

Tuesday, July 19, 2011

कुछ उलझे ख़्याल, कुछ सुलझे से...

कुछ तो बात है तेरे होने ना होने मे ग़ालिब, यूँ ही दिल किसी का तलबगार नही होता,
रात भर जागते है तेरे संग-संग, क्यूँ अब सुबह का इंतेज़ार नही होता,
रातें तन्हा ही हुआ करती थी मेरी, तेरी शब के आने से पहले,
फिर क्यूँ अब सुबह का इंतेज़ार नही होता,
कुछ तो बात है तेरे होने ना होने मे ग़ालिब, यूँ ही दिल किसी का तलबगार नही होता...


इस झुटे मलाल मे ही जी लेने दे हमसफर, इसी बहाने कुछ गुज़र तेरा साथ तो बवस्ता होगा,
तन्हा सफ़र करते-करते थक चुका हूँ अंदर, कुछ पल तो तेरा दीदार होगा,
बातें ना जाने कितनी हो चुकी दो दिलों के दरमियाँ, फिर क्यूँ ना जाने क्यूँ कुछ अधूरा सा लगता है,
रात खूब गुज़री है आहिस्ता-आहिस्ता, सुलगते ज़ज्बातों के दरमियाँ,
फिर ना जाने क्यूँ कुछ अधूरा-अधूरा सा ख्वाब सा क्यूँ लगता है,
इस झुटे मलाल मे ही जी लेने दे हमसफर, इसी बहाने कुछ गुज़र तेरा साथ तो बवस्ता होगा,
तन्हा सफ़र करते-करते थक चुका हून अंदर, कुछ पल तो तेरा दीदार होगा...


क्यूँ हालात-ए-दिल समझ नही पाते वो, क्यूँ ज़ज्बात-ए-दिल संभाल नही पाते वो,
दिल की हसरातों को जान कर भी अनदेखा कर देते है वो,
कहते है क्यूँ बेफ़िजूल फ़िक्र करते रहते हो, तुम तो समझदार हो सब कुछ समझ जाते हो,
दिल की हसरातों को जान कर भी अनदेखा कर जाते है वो...
बातों को खूब बना लेते है वो, हमको भी खूब चला लेते है वो,
बस यही अदा, उनकी जान ले गयी, कहते है समझ कर भी मेरे लफ़्ज़ों को समझ ना पाते वो,
कहते है क्यूँ बेफ़िजूल फ़िक्र करते हो, तुम तो समझदार हो सब कुछ समझ जाते हो,
दिल की हसरातों को जान कर भी अनदेखा कर जाते है वो...


मुस्कुरा कर भी कत्ल-ए-आम करते है, आँसू बहा कर भी हमे बदनाम करते है,
कहते है खुद ही समझ लो हाल-ए-दिल सबब, और कह अपने लफ़्ज़ों का हमे गुलाम करते है,
तुम ना बोलोंगी तो यूँ लफ्ज़ कहाँ से आएँगे, तुम ना यूँ साथ होगी तो वो जज़्ब कहाँ से आएँगे,
साथ है तेरा तो ज़िंदा सा लगता हूँ, वरना लाज़िम था मेरा मरना यूँ लफ़्ज़ों के बिना,
कहते है खुद ही समझ लो हाल-ए-दिल सबब, और कह अपने लफ़्ज़ों का हमे गुलाम करते है,
मुस्कुरा कर भी कत्ल-ए-आम करते है, आँसू बहा कर भी हमे बदनाम करते है...
मेरी शायरी मुझसे ना थी, थी कही तुझसे ही, मेरे लफ्ज़ मुझसे ना थे, थे कहीं तुझमे ही,
मैं तो बस लफ़्ज़ों को पिरो देता हूँ, तेरे बालों की तर्ज़ पर,
और यूँ लफ़्ज़ों का सिलसिला बन जाता है तेरी-मेरी तरह, यूँ ही...

Monday, July 18, 2011

रोज़ नयी ख्वाहिशें...

रोज़ नयी ख्वाहिशें जन्म लेती है दिल मे, रोज़ हम उन्हे दबा लेते है,
कुछ आरज़ू है उनकी ऐसी, कि खुद नज़रें झुका लेते है,
बस कह देते है हाल-ए-दिल अपना, दो शायरी के लफ़्ज़ों मे,
पर ना जाने क्यूँ लोग उसे, मेरे प्यार का सबब मान लेते है,
रोज़ नयी ख्वाहिशें जन्म लेते है दिल मे, रोज़ हम उन्हे दबा लेते है,
कुछ आरज़ू है उनकी ऐसी, कि खुद नज़रें झुका लेते है...

जाने क्यूँ दिल मे...

जाने क्यूँ दिल मे कुछ उलझे सवाल है,
यह तेरा नूर-ए-इश्क़ है या बस बेमतलब ख्याल है,
जाने क्यूँ दिल हर बातों को तुझसे ही जोड़ देता है,
कहीं मैं तन्हा रह ना जाउ, यह दिल-ए-सवाल है,
हर बात का गिला भी तू, शिकवा भी तू बन जाता है क्यूँ,
हर रात जागने की वजह भी तू, बन जाता है क्यूँ,
जाने क्यूँ दिल मे कुछ उलझे सवाल है,
यह तेरा नूर-ए-इश्क़ है या बस मेरा बेमतलब ख्याल है...

कुछ बूँदों की बारिश...

कुछ बूँदों की बारिश, बरसने लगी मुझ पर,
कुछ चाहतों की ख्वाहिश, मचलने लगी तुझ पर,
क्यूँ बारिश की बूँदों से भीगा है मेरा मन,
क्या यह तेरी चाहतों का असर है, मुझ पर?
आज तपती धूप भी, हल्की भीनी छाव सी क्यूँ लगती है,
आज बंज़र मे भी, हल्की बोछार सी क्यूँ लगती है,
क्यूँ बारिश की बूँदों से भीगा है मेरा मन,
क्या यह तेरी चाहतों का असर है, मुझ पर...कुछ बूँदों की बारिश, बरसने लगी मुझ पर,
कुछ चाहतों की ख्वाहिश, मचलने लगी तुझ पर,
क्यूँ बारिश की बूँदों से भीगा है मेरा मन,
क्या यह तेरी चाहतों का असर है, मुझ पर?
आज तपती धूप भी, हल्की भीनी छाव सी क्यूँ लगती है,
आज बंज़र मे भी, हल्की बोछार सी क्यूँ लगती है,
क्यूँ बारिश की बूँदों से भीगा है मेरा मन,
क्या यह तेरी चाहतों का असर है, मुझ पर...

Sunday, July 17, 2011

सोचा ना था...

यूँ रात ऐसी गुज़रेगी, सोचा ना था,
यूँ बात ऐसी गुज़रेगी, सोचा ना था,
दोनो के दिलों की धड़कने, क्यूँ तेज़ थी बवस्ता,
यूँ जज्बातों के साथ ऐसे गुज़रेगी, सोचा ना था,
ना सोचा था की बातों का आलम ऐसा होगा,
ना सोचा था दिल के हालातों का मौसम ऐसा होगा,
यूँ गुज़रेगी रात कभी, ऐसा सोचा ना था,
यूँ गुज़रेंगे दिलों के अरमान, ऐसा सोचा ना था...

Wednesday, July 6, 2011

रात का नशा था या बात का नशा था...

रात का नशा था या बात का नशा था,
साथ का नशा था या ज़ज्बात का नशा था,
दोनो तरफ दिल धड़क रहा था ज़ोरो पर,
यह उनके साथ का नशा था या मेरे अल्फ़ाज़ का नशा था...
कुछ यादों का पुलिंदा ऐसा बना,
कुछ बातों का पुलिंदा ऐसा बना,
रात छोटी लगने लगी, क्यूँ बातों के आगे,
ज़ज्बात कम पड़ने लगे, हालात के आगे,
यह रात का नशा था या उनकी बातों का नशा था,
उनके साथ का नशा था या हमारे ज़ज्बात का नशा था...

Monday, July 4, 2011

खुद-ब-खुद...

बहक गए जाम, लड़खड़ाने लगे कदम खुद-ब-खुद,
यह नशा शराब का था, या था बस खुद-ब-खुद,
हलक चीरती सी उतरी थी यादें, जाने क्यूँ खुद-ब-खुद,
यह नशा शराब का था, या था बस खुद-ब-खुद,
कोशिशें बहुत की जाम से जाम मिलाने की, तेरे गम को भुलाने की,
कोशिशें बहुत की यादों के सायों से पीछा छुटाने की, 
पर नशा जो चढ़ा यादों का, आँखों से कुछ बूंदे छलक उठी खुद-ब-खुद,
यह नशा शराब का था, या था बस खुद-ब-खुद...

बन समोसा रह जाती है, सुर्ख होने तक अन्दर-अन्दर...

यादें, तेल में सुलगते समोसों की तरह होती है,
जो दर्द में सुलगने के बावजूद, मर्म अन्दर समेटे रहती है,
कभी सुर्ख हो लाल, फट पड़ती है दर्द के कड़ाह के अन्दर,
तो कभी इंतज़ार करती है, दबा कर तोड़े जाने का, दूसरों के जुल्म सह कर,
पर सुलगती रहती है टेढ़ी-मेढ़ी यादों की तरह,
बन समोसा रह जाती है, सुर्ख होने तक अन्दर-अन्दर...

बांध मुझको मूरत में, तालो में बंद किया...

आज मेरे अमानुष ने, प्यार का यह सिला दिया,
बाँध मुझको मूरतों में, तालो में बंद किया,
कह मुझ मूरत को भगवान्, दर्जा जो ऊंचा दिया,
बाँध मुझको मूरतों में, तालो में बंद किया...
बना पत्थर की मूरत, मुझको यूँ जड़वत किया,
सलाखों के पीछे बंद कर, मुझको यूँ निशस्त्र किया,
शीश झुका के दिया, प्यार जो, सम्मान जो,
आज उस प्यार को, यूँ तालो में बंद किया,
कह मुझ मूरत को भगवान्, दर्जा जो ऊंचा दिया,
बांध मुझको मूरत में, तालो में बंद किया...

Saturday, July 2, 2011

अरसा हुआ तुझे गुज़रे...

अरसा हुआ तुझे गुज़रे मेरी राहों से, फिर क्यूँ यादें ताज़ा है,
अरसा हुआ वो आँखे देखे, फिर क्यूँ सपने ताज़ा है,
अरसा हुआ हकीकत जाने-समझे, फिर क्यूँ दिल को याद वो वादा है,
अरसा हुआ तुझे गुज़रे, फिर क्यूँ यादें ताज़ा है...
अरसा हुआ उस बात को समझे, जो दिल माने-न माने,
अरसा हुआ उस रात को गुज़रे, गीले तकिये के सिरहाने,
अरसा हुआ वो आँखे देखे, फिर क्यों वो सपने ताज़ा है,
अरसा हुआ तुझे गुज़रे, फिर क्यूँ दर्द यह ज्यादा है...