कुछ तो बात है तेरे होने ना होने मे ग़ालिब, यूँ ही दिल किसी का तलबगार नही होता,
रात भर जागते है तेरे संग-संग, क्यूँ अब सुबह का इंतेज़ार नही होता,
रातें तन्हा ही हुआ करती थी मेरी, तेरी शब के आने से पहले,
फिर क्यूँ अब सुबह का इंतेज़ार नही होता,
कुछ तो बात है तेरे होने ना होने मे ग़ालिब, यूँ ही दिल किसी का तलबगार नही होता...
इस झुटे मलाल मे ही जी लेने दे हमसफर, इसी बहाने कुछ गुज़र तेरा साथ तो बवस्ता होगा,
तन्हा सफ़र करते-करते थक चुका हूँ अंदर, कुछ पल तो तेरा दीदार होगा,
बातें ना जाने कितनी हो चुकी दो दिलों के दरमियाँ, फिर क्यूँ ना जाने क्यूँ कुछ अधूरा सा लगता है,
रात खूब गुज़री है आहिस्ता-आहिस्ता, सुलगते ज़ज्बातों के दरमियाँ,
फिर ना जाने क्यूँ कुछ अधूरा-अधूरा सा ख्वाब सा क्यूँ लगता है,
इस झुटे मलाल मे ही जी लेने दे हमसफर, इसी बहाने कुछ गुज़र तेरा साथ तो बवस्ता होगा,
तन्हा सफ़र करते-करते थक चुका हून अंदर, कुछ पल तो तेरा दीदार होगा...
क्यूँ हालात-ए-दिल समझ नही पाते वो, क्यूँ ज़ज्बात-ए-दिल संभाल नही पाते वो,
दिल की हसरातों को जान कर भी अनदेखा कर देते है वो,
कहते है क्यूँ बेफ़िजूल फ़िक्र करते रहते हो, तुम तो समझदार हो सब कुछ समझ जाते हो,
दिल की हसरातों को जान कर भी अनदेखा कर जाते है वो...
बातों को खूब बना लेते है वो, हमको भी खूब चला लेते है वो,
बस यही अदा, उनकी जान ले गयी, कहते है समझ कर भी मेरे लफ़्ज़ों को समझ ना पाते वो,
कहते है क्यूँ बेफ़िजूल फ़िक्र करते हो, तुम तो समझदार हो सब कुछ समझ जाते हो,
दिल की हसरातों को जान कर भी अनदेखा कर जाते है वो...
मुस्कुरा कर भी कत्ल-ए-आम करते है, आँसू बहा कर भी हमे बदनाम करते है,
कहते है खुद ही समझ लो हाल-ए-दिल सबब, और कह अपने लफ़्ज़ों का हमे गुलाम करते है,
तुम ना बोलोंगी तो यूँ लफ्ज़ कहाँ से आएँगे, तुम ना यूँ साथ होगी तो वो जज़्ब कहाँ से आएँगे,
साथ है तेरा तो ज़िंदा सा लगता हूँ, वरना लाज़िम था मेरा मरना यूँ लफ़्ज़ों के बिना,
कहते है खुद ही समझ लो हाल-ए-दिल सबब, और कह अपने लफ़्ज़ों का हमे गुलाम करते है,
मुस्कुरा कर भी कत्ल-ए-आम करते है, आँसू बहा कर भी हमे बदनाम करते है...
मेरी शायरी मुझसे ना थी, थी कही तुझसे ही, मेरे लफ्ज़ मुझसे ना थे, थे कहीं तुझमे ही,
मैं तो बस लफ़्ज़ों को पिरो देता हूँ, तेरे बालों की तर्ज़ पर,
और यूँ लफ़्ज़ों का सिलसिला बन जाता है तेरी-मेरी तरह, यूँ ही...