रोज़ नयी ख्वाहिशें जन्म लेती है दिल मे, रोज़ हम उन्हे दबा लेते है,
कुछ आरज़ू है उनकी ऐसी, कि खुद नज़रें झुका लेते है,
बस कह देते है हाल-ए-दिल अपना, दो शायरी के लफ़्ज़ों मे,
पर ना जाने क्यूँ लोग उसे, मेरे प्यार का सबब मान लेते है,
रोज़ नयी ख्वाहिशें जन्म लेते है दिल मे, रोज़ हम उन्हे दबा लेते है,
कुछ आरज़ू है उनकी ऐसी, कि खुद नज़रें झुका लेते है...
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