यादें, तेल में सुलगते समोसों की तरह होती है,
जो दर्द में सुलगने के बावजूद, मर्म अन्दर समेटे रहती है,
कभी सुर्ख हो लाल, फट पड़ती है दर्द के कड़ाह के अन्दर,
तो कभी इंतज़ार करती है, दबा कर तोड़े जाने का, दूसरों के जुल्म सह कर,
पर सुलगती रहती है टेढ़ी-मेढ़ी यादों की तरह,
बन समोसा रह जाती है, सुर्ख होने तक अन्दर-अन्दर...
No comments:
Post a Comment