Monday, July 30, 2012

होंठों पर वो आती नहीं...

कुछ बात है सीने में दबी-दबी, होंठों पर आती नहीं,
न मुझसे कहती, न तुम्हे बताती, लबों पर वो आती नहीं,
कहना है शायद कुछ उसको, लफ्ज़ वो मुनासिब पाती नहीं,
एक बात है दिल में दबी-दबी, होंठों पर वो आती नहीं ।

दिल में घुमड़-घुमड़ करती रही,
मन में उथल-पुथल चलती रही,
कानों में आ-आकर, मुझे कुछ बताती नहीं,
एक बात है दिल में दबी-दबी, होंठों पर वो आती नहीं ।।

Thursday, July 26, 2012

उम्मीद के बादल...

दूर गाँव उम्मीद के बादल घरड-घरड लहराए,
छलकी-हलकी गगरी में, बरखा जल ले आये,
देख चिर्रैया, चिर-चिर बोली, बादल मुस्काये,
दूर गाँव उम्मीद के बादल बरखा जल ले आये ।

थोड़ी हवा चली, थोड़ी फिज़ा खिली,
कुछ पंछी भी लहराए,
छलकी-हलकी गगरी में, बरखा जल ले आये,
मैं प्यासा-तरसा खड़ा था नीचे,
बूंदों की आस में आँखे मीचे,
जन्मों का प्यासा हो जैसे,
राही, भटका-प्यासा देख कर मुझको, बादल भी मुस्काये,
दूर गाँव उम्मीद के बादल घरड-घरड लहराए ।। 

आम-जन की खीज...















छंद कथा थी, विरह व्यथा थी,
जग की सबसे बड़ी व्यथा थी,
मैं खड़ा हुआ था, सत-पुरुषों के बीच,
विरह बड़ी थी, जंग छिड़ी थी,
सत-पुरुषों के बीच,
सावन आया, बरखा नहीं लाया,
सूखा पड़ गया, राही मर गया,
क्या इन्द्र-देव को नहीं दिखती, आम-जन की खीज,
छंद कथा थी, विरह व्यथा थी,
मैं खड़ा हुआ था, सत-पुरुषों के बीच ।

सब-जन कर गए त्राहिमाम,
जर-जर धरती का काम तमाम,
प्यासों की एक जंग छिड़ी थी,
सत-पुरुषों की फ़ोज खड़ी थी,
क्या इन्द्र-देव को नहीं दिखती, आम-जन की खीज,
छंद कथा थी, विरह व्यथा थी,
मैं खड़ा हुआ था, सत-पुरुषों के बीचे ।।

मैं अनपढ़-गूंड जर-जर काया,
सत-पुरुषों में खोयी काया,
एक आस रख, तक कर देखी,
इन्द्र-देव की ओर,
मनन-मन विनती कर,
इन्द्र-देव की ओर,
सब-जन कर गए त्राहिमाम,
जर-जर धरती का काम तमाम,
प्यासों की जो यह जंग छिड़ी है,
सत-पुरुषों की जो यह फ़ौज खड़ी है,
बरसा नभ से झर-झर जल,
प्यासे मन को तर कर दो,
बरसा नभ से झर-झर जल,
सबकी विरह तर दो ।


छंद कथा थी, विरह व्यथा थी,
मैं खड़ा हुआ था, सत-पुरुषों के बीच,
क्या इन्द्र-देव को नहीं दिखती, आम-जन की खीज ।।

ज़िन्दगी...

कभी धुप, कभी छांव सी ज़िन्दगी,
दूर बस्ती, एक गाँव सी ज़िन्दगी,
न रुक ज़माने के मंज़र देख,
चलते ही रहना है ज़िन्दगी...
कभी आग का दरिया तैर पार करना ज़िन्दगी,
कभी ठोकरों से मिली हार का सम्मान करना ज़िन्दगी,
मचलती लहरों पर सवार होना ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी की नौका को नैय्या पार करना ज़िन्दगी,
न रुक ज़माने के मंज़र देख,
क्यूंकि, चलते ही रहना है ज़िन्दगी।

Wednesday, July 18, 2012

मैं गया नहीं हूँ...

मैं गया नहीं हूँ, हूँ जिंदा कहीं राहों में,
मैं मिटा जरूर हूँ, पर जिंदा हूँ दिलों की चाहों में,
एक छाप छोड़, ज़िन्दगी का जाम पिया मैंने,
एक आस छोड़, ज़िन्दगी को नाम किया मैंने,
मैं गया नहीं हूँ, हूँ जिंदा कहीं राहों में,
मैं मिटा जरूर हूँ, पर जिंदा हूँ दिलों की चाहों में ।

Sunday, July 8, 2012

भवरे की चाहत...



















आज, लफ्ज़ नहीं मेरे पास, भवरे की चाहत कहने को,
जब लिखने बैठा सोच में, खो गए लफ्ज़ जो कहने को,
भवरे की चाहत देख कर मैं, यूँ होले-होले मुस्काया,
लिखने की चाहत जागी, भवरा दिल यूँ शरमाया,
कली जो मुस्कुरायी देख कर मैं, भवरा दिल उड़ते आया,
भवरे की चाहत देख कर मैं, जाने क्यों शरमाया,
जब लिखने बैठा सोच में मैं, खो गए लफ्ज़ जो कहने को,
लफ्ज़ नहीं मेरे पास, भवरे की चाहत कहने को ।

कभी यहाँ उड़ा, कभी वहां उड़ा,
घुमा फिर-फिर वो कहने को,
कभी भूला-भटका फूलों टहनी,
अपनी चाहत को कहने को,
कली जो मुस्कुराई देख कर मैं, भवरा दिल उड़ते आया,
भवरे की चाहत देख कर मैं, जाने क्यूँ शरमाया,
जब लिखने बैठा सोच में मैं, खो गए लफ्ज़ जो कहने को,
लफ्ज़ नहीं मेरे पास, भवरे की चाहत कहने को ।।

Friday, July 6, 2012

मेरे लफ़्ज़ों में वो जान नहीं...















मेरे लफ़्ज़ों में वो जान नहीं,
मेरे लफ़्ज़ों में वो गान नहीं,
जो किसी के दिल की विरह बन जाए,
सच्चे दिल की पीड़ा कह जाए,
लफ़्ज़ों अश्कों में मिल जाए,
जग से दिल की व्यथा कह जाए,
लफ़्ज़ों में वो गान नहीं,
मेरे लफ़्ज़ों में वो जान नहीं ।

कभी सोचा मैं भी कुछ लिख दूं,
लिख कर दिल की विरह कह दूं,
कभी लफ्ज़ मुनासिब न मिल पाते,
दिल से दिल की वो कह न पाते,
डर-डर कर अब न कुछ लिख दूं,
लिख कर दिल की विरह कह दूं,
क्यूँ? क्यूंकि, मेरे लफ़्ज़ों में वो जान नहीं,
मेरे लफ़्ज़ों में वो गान नहीं ।।

लिख कर मैंने यूँ जीना सीखा,
दुनिया का दुःख सहना सीखा,
कह कर अपनी छोटी बात,
रख दी दिल की छोटी आस,
दुनिया से सब कुछ कह दूं,
कभी सोचा मैं भी कुछ लिख दूं,
कुछ-कुछ लिख कर सब कुछ कह दूं,
पर, मेरे लफ़्ज़ों में वो गान नहीं,
लफ़्ज़ों में मेरे वो जान नहीं ।।।

Thursday, July 5, 2012

चातक ने आवाज़ लगायी...

















चातक ने आवाज़ लगायी, प्यासे मन से विरह आई,
अब तो आ जाओ काले बदरा, बरसो नभ से, प्यासा मनवा,
अब तो हो गयी त्राहि-त्राहि, प्यासे मन से विरह आई,
धुप लगी है चुभने-चुभने,
मन लगा है ऊबने-ऊबने,
पतझड़ ने भी ली अंगड़ाई,
प्यासे मन से विरह आई, चातक ने आवाज़ लगायी ।

हवा गरम है,
उमस न यह कम है,
चुभती सूरज की ये अंगड़ाई,
चातक ने आवाज़ लगायी,
प्यासे मन से विरह आई,
ऐसा क्यूँ है अत्याचार,
जीवों में है हाहाकार,
सबकी जीवाः घबराई,
मन से यह आवाज़ लगायी,
प्यासे मन से विरह आई,
चातक ने आवाज़ लगायी ।

सफ़र...

उड़ चला मैं ज़िन्दगी के सफ़र पे,
न चाह, न राह, इच्छाओं के अनजाने सफ़र पे,
आँख खुली तो देखी दुनिया,
जो नोचने, काटने को दौड़ती दुनिया,
पर फिर भी उड़ चला ज़िन्दगी के सफ़र पे,
न चाह, न राह, इच्छाओं के अनजाने सफ़र पे,
कभी रास्ता भूला, कभी भटका अनजाने सफ़र पे,
कभी चलता रहा, जीने की चाह के सफ़र पे,
चलता रहा दुनिया की भीड़ में,
उलझा रहा रिश्तों की जंजीर में,
बस उड़ चला ज़िन्दगी के सफ़र पे,
न चाह, न राह, इच्छाओं के अनजाने सफ़र पे । 

चाहत...

एक, अजीब सी चाहत है जागी,
जो बचपन की यादों को है टटोलती,
कभी राज़-इ-दिल खोलती,
तो कभी अश्कों सी बोलती,
यादों का स्याह समुन्दर,
गहरा हो खोजता अथाह अर्थ को,
ज़िन्दगी के अनचाहे पहलूँ को सांसें टटोलती,
एक अजीब सी चाहत है जागी,
जो बचपन की यादों को है टटोलती ।

कभी गुज़रता वक़्त रुकता, देखता मुड़ कर,
खोजता अपने होने की वजह, सोचता रुक कर,
कभी सहम जाता ज़िन्दगी के दर्द और सितमों से,
तो कभी फूटता, रोता अन्दर ही अन्दर रह-रह कर,
एक अजीब सी चाहत है जागी,
जो बचपन की यादों को टटोलती,
कभी राज़-इ-दिल खोलती,
तो कभी अश्कों में बोलती ।।

राह गुजरी...

वक़्त गुज़रा, मैं जो बैठा, जाने किस किस सोच में,
राह गुजरी, मंजिलें गुजरी, राही दिलबर खोज में,
वक़्त का फलसफा जो देखा, आया न कुछ रास ये,
थाम कलम जो लिखने बैठा, आया न कुछ पास में,
वक़्त गुज़रा, मैं जो बैठा, जाने किस किस सोच में,
राह गुजरी, मंजिलें गुजरी, राही दिलबर खोज में ।

ज़ख्म-इ-दिल बेहाल था,
दर्द का जंजाल था,
घाव गहरे थे हरे,
चेहरे, दर्द से सूखे पड़े,
वक़्त का फलसफा जो देखा, आया न कुछ रास ये,
थाम कलम जो लिखने बैठा, आया न कुछ पास ये,
वक़्त गुज़रा, मैं जो बैठा, जाने किस किस सोच में,
राह गुजरी, मंजिलें गुजरी, राही दिलबर खोज में ।।