मेरे लफ़्ज़ों में वो जान नहीं,
मेरे लफ़्ज़ों में वो गान नहीं,
जो किसी के दिल की विरह बन जाए,
सच्चे दिल की पीड़ा कह जाए,
लफ़्ज़ों अश्कों में मिल जाए,
जग से दिल की व्यथा कह जाए,
लफ़्ज़ों में वो गान नहीं,
मेरे लफ़्ज़ों में वो जान नहीं ।
कभी सोचा मैं भी कुछ लिख दूं,
लिख कर दिल की विरह कह दूं,
कभी लफ्ज़ मुनासिब न मिल पाते,
दिल से दिल की वो कह न पाते,
डर-डर कर अब न कुछ लिख दूं,
लिख कर दिल की विरह कह दूं,
क्यूँ? क्यूंकि, मेरे लफ़्ज़ों में वो जान नहीं,
मेरे लफ़्ज़ों में वो गान नहीं ।।
लिख कर मैंने यूँ जीना सीखा,
दुनिया का दुःख सहना सीखा,
कह कर अपनी छोटी बात,
रख दी दिल की छोटी आस,
दुनिया से सब कुछ कह दूं,
कभी सोचा मैं भी कुछ लिख दूं,
कुछ-कुछ लिख कर सब कुछ कह दूं,
पर, मेरे लफ़्ज़ों में वो गान नहीं,
लफ़्ज़ों में मेरे वो जान नहीं ।।।

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