छंद कथा थी, विरह व्यथा थी,
जग की सबसे बड़ी व्यथा थी,
मैं खड़ा हुआ था, सत-पुरुषों के बीच,
विरह बड़ी थी, जंग छिड़ी थी,
सत-पुरुषों के बीच,
सावन आया, बरखा नहीं लाया,
सूखा पड़ गया, राही मर गया,
क्या इन्द्र-देव को नहीं दिखती, आम-जन की खीज,
छंद कथा थी, विरह व्यथा थी,
मैं खड़ा हुआ था, सत-पुरुषों के बीच ।
सब-जन कर गए त्राहिमाम,
जर-जर धरती का काम तमाम,
प्यासों की एक जंग छिड़ी थी,
सत-पुरुषों की फ़ोज खड़ी थी,
क्या इन्द्र-देव को नहीं दिखती, आम-जन की खीज,
छंद कथा थी, विरह व्यथा थी,
मैं खड़ा हुआ था, सत-पुरुषों के बीचे ।।
मैं अनपढ़-गूंड जर-जर काया,
सत-पुरुषों में खोयी काया,
एक आस रख, तक कर देखी,
इन्द्र-देव की ओर,
मनन-मन विनती कर,
इन्द्र-देव की ओर,
सब-जन कर गए त्राहिमाम,
जर-जर धरती का काम तमाम,
प्यासों की जो यह जंग छिड़ी है,
सत-पुरुषों की जो यह फ़ौज खड़ी है,
बरसा नभ से झर-झर जल,
प्यासे मन को तर कर दो,
बरसा नभ से झर-झर जल,
सबकी विरह तर दो ।
छंद कथा थी, विरह व्यथा थी,
मैं खड़ा हुआ था, सत-पुरुषों के बीच,
क्या इन्द्र-देव को नहीं दिखती, आम-जन की खीज ।।

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