Thursday, July 5, 2012

चाहत...

एक, अजीब सी चाहत है जागी,
जो बचपन की यादों को है टटोलती,
कभी राज़-इ-दिल खोलती,
तो कभी अश्कों सी बोलती,
यादों का स्याह समुन्दर,
गहरा हो खोजता अथाह अर्थ को,
ज़िन्दगी के अनचाहे पहलूँ को सांसें टटोलती,
एक अजीब सी चाहत है जागी,
जो बचपन की यादों को है टटोलती ।

कभी गुज़रता वक़्त रुकता, देखता मुड़ कर,
खोजता अपने होने की वजह, सोचता रुक कर,
कभी सहम जाता ज़िन्दगी के दर्द और सितमों से,
तो कभी फूटता, रोता अन्दर ही अन्दर रह-रह कर,
एक अजीब सी चाहत है जागी,
जो बचपन की यादों को टटोलती,
कभी राज़-इ-दिल खोलती,
तो कभी अश्कों में बोलती ।।

No comments:

Post a Comment