Thursday, July 5, 2012

सफ़र...

उड़ चला मैं ज़िन्दगी के सफ़र पे,
न चाह, न राह, इच्छाओं के अनजाने सफ़र पे,
आँख खुली तो देखी दुनिया,
जो नोचने, काटने को दौड़ती दुनिया,
पर फिर भी उड़ चला ज़िन्दगी के सफ़र पे,
न चाह, न राह, इच्छाओं के अनजाने सफ़र पे,
कभी रास्ता भूला, कभी भटका अनजाने सफ़र पे,
कभी चलता रहा, जीने की चाह के सफ़र पे,
चलता रहा दुनिया की भीड़ में,
उलझा रहा रिश्तों की जंजीर में,
बस उड़ चला ज़िन्दगी के सफ़र पे,
न चाह, न राह, इच्छाओं के अनजाने सफ़र पे । 

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