Friday, November 30, 2012

दिन देखे मैंने नए-नए...

कुछ खोया मैंने, पर कुछ मैंने पाया है,
दिन देखे मैंने नए-नए, नित-दिन कुछ सिखाया है,
गम नहीं कुछ खोने का, अपना सबहु बनाया है,
प्यार बाटा बस दुनिया में, जीवन इसे बनाया है,
कुछ खोया मैंने, पर कुछ मैंने पाया है,
दिन देखे मैंने नए-नए, नित-दिन कुछ सिखाया है ।

जो अपना था, वो अपना है,
बस दिल में जगह बनायीं है,
जो सपना था, वो कब अपना है,
बस दिल से उसे लगाया है,
दिन देखे मैंने नए-नए, नित-दिन कुछ सिखाया है,
गम नहीं कुछ खोने का, अपना सबहु बनाया है,
प्यार बता बस दुनिया में, जीवन इसे बनाया है,
कुछ खोया मैंने, पर कुछ मैंने पाया है,
दिन देखे मैंने नए-नए, नित-दिन कुछ सिखाया है ।।

Tuesday, November 27, 2012

मंथन...

बहुत मंथन कर रस निचोड़ा,
छंद दो छंद उसमे जोड़ा,
रात का जो जाम छोड़ा,
शायरों से नाता जोड़ा,
तोड़ा-मोड़ा खुद को मरोड़ा,
साँस भर एक बाण छोड़ा,
शब्दों का संचन कर छोड़ा,
छंद दो छंद उसमे जोड़ा,
रात का जो जाम छोड़ा,
बहुत मंथन कर एक रस निचोड़ा,
जो रात काली सी है छाई,
संग अपने बात लायी,
राग उसने यह सुनाई,
सुबह की वीणा बजाई,
मंचिन्तन ने यह आवाज़ लगायी,
कि, देख सपने तू नये, कल की चिंता छोड़ दे,
आज जी ले तू अभी, कल का भ्रम तोड़ दे,
जोड़ संपत्ति, रज और जर, कुछ मिले न उम्र भर,
जो ज्ञान का सागर भरे, तर जायेगा उम्र भर,
जो रात काली सी है आई,
संग अपने बात लायी,
जो रात का यूँ नाम जोड़ा,
शायरों से नाता जोड़ा,
छंद दो छंद उसमे जोड़ा,
तो देखो कैसा रस निचोड़ा ।

रात कहने लगी...


सर्द होने लगी है रातें,
रात कहने लगी है बातें,
खुश्बुओमे में प्यार है,
फिर क्यूँ हवाओं को इनकार है,
मैं, कहता नहीं कुछ, तकता हूँ दो आँखें,
और आँखों-आँखों में हो गयी जाने कितनी बातें,
फिर क्यूँ रात को इनकार है,
हवाओं से पूछो, उनको भी प्यार है,
जो सर्द होने लगी है रातें,
अब, रात कहने लगी है तुम्हारी बातें ।

Monday, November 26, 2012

ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा...

हम को भी याद आये किस्से पुराने से,
जो कल गुज़रे थे, साथ ज़माने से,
चंद पंग्तियों में ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा मिल गया,
पढ़ता रहा बार-बार, और हांथों से दिल गया,
वो जुल्फ़ों की छांव, वादियों में हाँथ थामे घुल गया,
एक गुज़रा लम्हा जाने कैसे आँखों को मिल गया,
जो कल गुज़रे थे, साथ ज़माने से,
हम को भी याद आये किस्से पुराने से,
चंद पंग्तियों में ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा मिल गया,
मैं, पढ़ता रहा बार-बार और हांथों से दिल गया ।

Thursday, November 22, 2012

दिन सुनहरे...

बचपन के वो दिन सुनहरे,
न काम के फंदे, न बॉस के चेहरे,
खुद की उलझन, सपनों के पहरे,
यादों के है रंग सुनहरे ।
न बॉस की गाली, न चीख-चपाटा,
कम तन्खुवाह का न पड़ता चांटा,
न घर की चिंता, बस सैर-सपाटा,
गली में पहिया, दूर भगाता,
यादों के है रूप सुनहरे,
बचपन के वो दिन सुनहरे ।।

Monday, November 19, 2012

कोई शायर कहता है...

कोई शायर कहता है, कोई दीवाना कहता है,
मैं वो कहता हूँ जो दिल का तराना कहता है,
फ़साना अल्फाज़ों का बस यूँ ही सुना देते है,
मैं तो वो कहता है जो ज़माना कहता है ।

तिश्निगी में डूब, जज़्बातों को पिरो देते है,
जाम में डूब, पैमाना भी भिगो देते है,
कोई हार कहता है, कोई नजराना कहता है,
मैं वो कहता हूँ जो दिल का तराना कहता है ।।

Sunday, November 18, 2012

आलम...

जवाब-ओ-तिश्नगी का आलम न पूछो,
जददो मेरा यार आये तो एक सवाल-इ-दिल पूछो,
कि, क्या गुनाह है मेरा की प्यार तुझसे कर बैठा,
क्यूँ नहीं समझते की खुद की हद पार कर बैठा,
दिखते हर नज़र में उनको सवाल है,
क्यूँ नहीं समझते की दिल बेहाल है,
अब इंतज़ार-इ-लम्हा गुज़रता नहीं,
कोई कब तक ख़ामोशी को क्यूँ पढता रहे,
बताते क्यूँ नहीं जो हालात-इ-ख्याल है,
पूछो तो कहते हो, कि, पूछते सवाल है,
जवाब-ओ-तिश्नगी का आलम न पूछो,
जददो मेरा यार आये तो एक सवाल-इ-दिल पूछो ।

क्यूँ जान भी...

एक अजब सी बैचैनी है, क्यूँ राहत सी आती नहीं,
बेज़ार, बंजर हूँ तनहा सा, क्यूँ जान भी यह जाती नहीं,
उलझन, सुल्झानों में उलझ कर रह गयी,
बातें, रातों में भटक कर बह गयी,
क्यूँ खुद को होम करता पाऊं मैं,
एक अजब सी बैचैनी है आज कल, क्यूँ राहत सी मुझको आती नहीं,
बेज़ार, बंजर हूँ तनहा सा, क्यूँ जान भी यह जाती नहीं ।

Wednesday, November 7, 2012

दर्द होता है...

मत तड़पाओ खुद को, दर्द होता है,
खुद को पत्थर कहने से, दिल ज़र्द होता है,
टूट कर बिखरना तो फितरत है,
पर गिरकर संभालना भी नियत है,
इश्क करो खुद से, देखो रोशन है दुनिया,
गम में न डूबो, देखो गुलशन है दुनिया,
बंद करो खुद पर ज़ुल्म-ओ-सितम,
इतने भी बर्बाद नहीं की फूटे है करम,
ज़र्द न हो रूह तेरी,
चाह, जिंदा रहे दिल में तेरी,
इसलिए, मत तड़पाओ  खुद को, हमे दर्द होता है,
खुद को पत्थर कहने से, दिल ज़र्द होता है ।

Tuesday, November 6, 2012

कहते है...

कहते है, हम तो पत्थर है, दिल लगाओ न चोट खाओगे,
शीशा सा दिल है तुम्हारा, टूट कर बिखर जाओगे,
बहुत ज़ुल्म-ओ-सितम सहे ज़माने के, अब, प्यार-इ-कतरा से भी डर लगता है,
बहुत लड़ चुके ज़माने से, अब तो, मौत-इ-गले मिलने को दिल करता है,
थक कर हार चुके, जिस्म बस जिंदा लाश है,
कोई ख़ुशी नहीं मेरे पास, मायूसी भी उदास है,
कहते है, हम तो पत्थर है, दिल लगाओ न चोट खाओगे,
शीशा सा दिल है तुम्हारा, टूट कर बिखर जाओगे ।


पर, हम यह कहते है...

कांच की दीवार बनी है, शीशा सा दिल कैद है,
मासूमियत मायूसियत में बदली, रूह-इ-जिस्म कैद है,
सांस लेते है जीने को पर जीते नहीं,
जिंदा तो है पर खुद को जीने नहीं,
बस, उदास है खुद से, मायूस-इ-ज़िन्दगी समझ बैठे है,
प्यार करते है खुद से, पर दुश्मन समझ बैठे है,
कहते है पत्थर-दिल है वो, बिखर जाओगे,
पर, जुड़ते क्यूँ नहीं खुद से, सवार जाओगे,
इश्क करो खुद से निखर जाओगे,
आजमा कर देखो खुद को, सवार जाओगे ।।

Saturday, November 3, 2012

दरमियाँ...

एक अजब सी बैचैनी है दिल में, मुझको चुप रहने नहीं देती,
हाँथों को बाँध भी लूं तो लबों पर लफ़्ज़ों को तनहा रहने नहीं देती |

एक दीवार सी बना बैठे है दरमियाँ,कैद उनकी रूह नज़र आती है,
छूना चाहते है रूह को,
तो कहते है आंसू पोछ लो दामन-इ-दरख्तों से,
हम तो जिंदा लाश है, तुमको कहाँ हम में रूह नज़र आती है,
एक दीवार सी बना बैठे है दरमियाँ,
कैद उनकी रूह नज़र आती है |

एक झटके में अपना कह कर हमसे किनारा कर लिया,
संग चलते रहे उम्र भर, फिर भी बेसहारा कर दिया,
जब जरूरत पड़ी उम्र-ओ-इश्क निभाने की,
पलट कर भी नहीं देखा, हमसे किनारा कर लिया |

Friday, November 2, 2012

हाल-इ-दिल...

रात काली, है अँधेरा,पल रहा सुबह का चेहरा,
बढ़ रही करवट नयी,
कर रही हरकत नयी,
जो रात काली, है अँधेरा,
पल रहा सुबह का चेहरा |

मेरे हाल-इ-दिल को फसाना समझ लेते है,
दर्द को, मुस्कराहट का नज़राना समझ लेते है,
कैसे बतलाये उन्हें की यह शायरी नहीं हाल-इ-दिल है,
पर मेरे हाल-इ-दिल को फसाना समझ लेते है |

मलाल-इ-हालात भी नहीं उनको,
ज़ख्म-इ-दिल कैसे दिखलाए उन्हें,
मेरी दिल्लगी का हंस का मज़ाक बना देते है,
दिल-इ-हसरत कैसे समझाए उन्हें |


Thursday, November 1, 2012

सोचते-सोचते...

तेरे पंखों पर शक नहीं...
तेरे पंखों पर शक नहीं, इरादे पर गुमान है,
सपनों की हकीकत से हो रु-ब-रु, यह आस्मां भी नया है,
कर होसलों को बुलंद इतना की आस्मां भी कम निकले,
क्यूंकि ये अंदाज़-इ-बयाँ, होसला-इ-दरमियान है |

सोचते-सोचते...
सोचते-सोचते एक ख्याल आया,
जाने क्यूँ दिल में एक सवाल आया,
कि, क्यूँ खुदा सा आज तुझको पाया,
क्या तुझमे रब है समाया,
जब नज़रें तुझसे फेरी, खुद से दूर पाया,
आज जाने क्यूँ तू रब सा नज़र आया,
सोचते-सोचते एक ख़्याल आया,
जाने क्यूँ दिल में एक सवाल आया |

पाना-खोना...
कुछ पाने का, कुछ खोने का, जाने कैसा सपना है,
कभी पास हुआ, कभी दूर हुआ, फिर भी वो क्यूँ अपना है,
भर कर झोली में, झांके मन,
मन विचलित सा, मन कौतुहल,
कुछ पाने का, कुछ खोने का, जाने कैसा सपना है,
कभी पास हुआ, कभी दूर हुआ, फिर भी वो क्यूँ अपना है |