Sunday, November 18, 2012

आलम...

जवाब-ओ-तिश्नगी का आलम न पूछो,
जददो मेरा यार आये तो एक सवाल-इ-दिल पूछो,
कि, क्या गुनाह है मेरा की प्यार तुझसे कर बैठा,
क्यूँ नहीं समझते की खुद की हद पार कर बैठा,
दिखते हर नज़र में उनको सवाल है,
क्यूँ नहीं समझते की दिल बेहाल है,
अब इंतज़ार-इ-लम्हा गुज़रता नहीं,
कोई कब तक ख़ामोशी को क्यूँ पढता रहे,
बताते क्यूँ नहीं जो हालात-इ-ख्याल है,
पूछो तो कहते हो, कि, पूछते सवाल है,
जवाब-ओ-तिश्नगी का आलम न पूछो,
जददो मेरा यार आये तो एक सवाल-इ-दिल पूछो ।

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