कहते है, हम तो पत्थर है, दिल लगाओ न चोट खाओगे,
शीशा सा दिल है तुम्हारा, टूट कर बिखर जाओगे,
बहुत ज़ुल्म-ओ-सितम सहे ज़माने के, अब, प्यार-इ-कतरा से भी डर लगता है,
बहुत लड़ चुके ज़माने से, अब तो, मौत-इ-गले मिलने को दिल करता है,
थक कर हार चुके, जिस्म बस जिंदा लाश है,
कोई ख़ुशी नहीं मेरे पास, मायूसी भी उदास है,
कहते है, हम तो पत्थर है, दिल लगाओ न चोट खाओगे,
शीशा सा दिल है तुम्हारा, टूट कर बिखर जाओगे ।
पर, हम यह कहते है...
कांच की दीवार बनी है, शीशा सा दिल कैद है,
मासूमियत मायूसियत में बदली, रूह-इ-जिस्म कैद है,
सांस लेते है जीने को पर जीते नहीं,
जिंदा तो है पर खुद को जीने नहीं,
बस, उदास है खुद से, मायूस-इ-ज़िन्दगी समझ बैठे है,
प्यार करते है खुद से, पर दुश्मन समझ बैठे है,
कहते है पत्थर-दिल है वो, बिखर जाओगे,
पर, जुड़ते क्यूँ नहीं खुद से, सवार जाओगे,
इश्क करो खुद से निखर जाओगे,
आजमा कर देखो खुद को, सवार जाओगे ।।
शीशा सा दिल है तुम्हारा, टूट कर बिखर जाओगे,
बहुत ज़ुल्म-ओ-सितम सहे ज़माने के, अब, प्यार-इ-कतरा से भी डर लगता है,
बहुत लड़ चुके ज़माने से, अब तो, मौत-इ-गले मिलने को दिल करता है,
थक कर हार चुके, जिस्म बस जिंदा लाश है,
कोई ख़ुशी नहीं मेरे पास, मायूसी भी उदास है,
कहते है, हम तो पत्थर है, दिल लगाओ न चोट खाओगे,
शीशा सा दिल है तुम्हारा, टूट कर बिखर जाओगे ।
पर, हम यह कहते है...
कांच की दीवार बनी है, शीशा सा दिल कैद है,
मासूमियत मायूसियत में बदली, रूह-इ-जिस्म कैद है,
सांस लेते है जीने को पर जीते नहीं,
जिंदा तो है पर खुद को जीने नहीं,
बस, उदास है खुद से, मायूस-इ-ज़िन्दगी समझ बैठे है,
प्यार करते है खुद से, पर दुश्मन समझ बैठे है,
कहते है पत्थर-दिल है वो, बिखर जाओगे,
पर, जुड़ते क्यूँ नहीं खुद से, सवार जाओगे,
इश्क करो खुद से निखर जाओगे,
आजमा कर देखो खुद को, सवार जाओगे ।।
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