बचपन के वो दिन सुनहरे,
न काम के फंदे, न बॉस के चेहरे,
खुद की उलझन, सपनों के पहरे,
यादों के है रंग सुनहरे ।
न बॉस की गाली, न चीख-चपाटा,
कम तन्खुवाह का न पड़ता चांटा,
न घर की चिंता, बस सैर-सपाटा,
गली में पहिया, दूर भगाता,
यादों के है रूप सुनहरे,
बचपन के वो दिन सुनहरे ।।
न काम के फंदे, न बॉस के चेहरे,
खुद की उलझन, सपनों के पहरे,
यादों के है रंग सुनहरे ।
न बॉस की गाली, न चीख-चपाटा,
कम तन्खुवाह का न पड़ता चांटा,
न घर की चिंता, बस सैर-सपाटा,
गली में पहिया, दूर भगाता,
यादों के है रूप सुनहरे,
बचपन के वो दिन सुनहरे ।।
No comments:
Post a Comment