Saturday, November 3, 2012

दरमियाँ...

एक अजब सी बैचैनी है दिल में, मुझको चुप रहने नहीं देती,
हाँथों को बाँध भी लूं तो लबों पर लफ़्ज़ों को तनहा रहने नहीं देती |

एक दीवार सी बना बैठे है दरमियाँ,कैद उनकी रूह नज़र आती है,
छूना चाहते है रूह को,
तो कहते है आंसू पोछ लो दामन-इ-दरख्तों से,
हम तो जिंदा लाश है, तुमको कहाँ हम में रूह नज़र आती है,
एक दीवार सी बना बैठे है दरमियाँ,
कैद उनकी रूह नज़र आती है |

एक झटके में अपना कह कर हमसे किनारा कर लिया,
संग चलते रहे उम्र भर, फिर भी बेसहारा कर दिया,
जब जरूरत पड़ी उम्र-ओ-इश्क निभाने की,
पलट कर भी नहीं देखा, हमसे किनारा कर लिया |

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