Tuesday, November 27, 2012

मंथन...

बहुत मंथन कर रस निचोड़ा,
छंद दो छंद उसमे जोड़ा,
रात का जो जाम छोड़ा,
शायरों से नाता जोड़ा,
तोड़ा-मोड़ा खुद को मरोड़ा,
साँस भर एक बाण छोड़ा,
शब्दों का संचन कर छोड़ा,
छंद दो छंद उसमे जोड़ा,
रात का जो जाम छोड़ा,
बहुत मंथन कर एक रस निचोड़ा,
जो रात काली सी है छाई,
संग अपने बात लायी,
राग उसने यह सुनाई,
सुबह की वीणा बजाई,
मंचिन्तन ने यह आवाज़ लगायी,
कि, देख सपने तू नये, कल की चिंता छोड़ दे,
आज जी ले तू अभी, कल का भ्रम तोड़ दे,
जोड़ संपत्ति, रज और जर, कुछ मिले न उम्र भर,
जो ज्ञान का सागर भरे, तर जायेगा उम्र भर,
जो रात काली सी है आई,
संग अपने बात लायी,
जो रात का यूँ नाम जोड़ा,
शायरों से नाता जोड़ा,
छंद दो छंद उसमे जोड़ा,
तो देखो कैसा रस निचोड़ा ।

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