Friday, November 2, 2012

हाल-इ-दिल...

रात काली, है अँधेरा,पल रहा सुबह का चेहरा,
बढ़ रही करवट नयी,
कर रही हरकत नयी,
जो रात काली, है अँधेरा,
पल रहा सुबह का चेहरा |

मेरे हाल-इ-दिल को फसाना समझ लेते है,
दर्द को, मुस्कराहट का नज़राना समझ लेते है,
कैसे बतलाये उन्हें की यह शायरी नहीं हाल-इ-दिल है,
पर मेरे हाल-इ-दिल को फसाना समझ लेते है |

मलाल-इ-हालात भी नहीं उनको,
ज़ख्म-इ-दिल कैसे दिखलाए उन्हें,
मेरी दिल्लगी का हंस का मज़ाक बना देते है,
दिल-इ-हसरत कैसे समझाए उन्हें |


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