लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Monday, January 21, 2013
तकदीर-इ-तराश...
तकदीर-इ-तराश में गुजरी है ज़िन्दगी,
हम तो गोया ख़ाक ही जिए,
कम करते रहे "मय" मयखाने से,
और सोचा किये कम ही पिए,
जब जागे तो सोचे सवेरा हुआ,
सोये कहाँ थे ये खुद से पूछा किये,
तकदीर-इ-तराश में गुजरी है ज़िन्दगी,
हम तो गोया ख़ाक ही जिए ।
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