लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Wednesday, January 2, 2013
मलंग...
लोग कहते मुझे मलंग और रहते मुझसे तंग,
देखे मेरा अंग और बदले अपने रंग,
कभी तोड़े-मोड़े माटी सा,
कभी कुचले-मुच्ले बाटी सा,
और कहते मुझे मलंग, पर रहते क्यूँ है तंग,
जब देखे मेरा ढंग तो बदले अपने रंग,
लोग कहते मुझे मलंग ।
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