Thursday, January 3, 2013

शहर में...

बहुत बैचैनी सी है शहर में,
हर आदमी नोचने को है दौड़ता,
बस मास के लोथड़ों पर जिंदा है हर शक्स,
जो दूजों को नोचने को है दौड़ता ।

छोटी सी बात को यूँ दिल पर लगा लेते हो,
माना अहम् है सवाल, क्यूँ दिल में चुभा लेते हो,
कोई दिल से जुड़ा है, न रखो उससे पर्दा,
एक छोटे से मजाक को क्यूँ दिल से लगा लेते हो ।

कह लेने दे दिल-इ-हसरत, ज़ेब होते लफ़्ज़ों से,
नासूर से बने बैठे है, कमबख्त दिल के अन्दर ।

उदासी मातम मनाती, चीखती नज़र आती है,
जाने की दिल-इ-अन्दर शोर-गुल मचा हुआ है ।

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