मन आँचल पर मैल चढ़ा है,
जात-पात का रंग मढ़ा है,
सोच बड़ी बिगड़ी सी है,
रूह पर जो यूँ मैल चढ़ा है,
मानुस को मानुस न समझे,
कैसा यह समाज खड़ा है,
बोटी-बोटी जिस्म को नोचे,
गिद्धों का संसार बसा है,
सोच बड़ी बिगड़ी सी है,
रूह पर जो यूँ मैल चढ़ा है,
जात-पात का रंग मढ़ा है,
मन आँचल पर जो यूँ मैल चढ़ा है ।
जात-पात का रंग मढ़ा है,
सोच बड़ी बिगड़ी सी है,
रूह पर जो यूँ मैल चढ़ा है,
मानुस को मानुस न समझे,
कैसा यह समाज खड़ा है,
बोटी-बोटी जिस्म को नोचे,
गिद्धों का संसार बसा है,
सोच बड़ी बिगड़ी सी है,
रूह पर जो यूँ मैल चढ़ा है,
जात-पात का रंग मढ़ा है,
मन आँचल पर जो यूँ मैल चढ़ा है ।
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