Thursday, January 17, 2013

लम्हा...

मिल ही जाती ढूंढने से, नज़र तेरी पाक सी,
हर कोई खुदा यूँ होता, नज़र होती पाक सी,
क़त्ल करते खंजरों से, जुबां न यह साफ़ सी,
मिल ही जाती ढूंढने से, नज़र मेरी पाक सी ।

वक़्त से बे-वक़्त मिले हम एक रोज़,
वजूद पूछते में ही वक़्त गुज़रता गया ।

वक़्त तो गुज़रता ही रहेगा तेरे-मेरे दरमियान,
एक रोज़ तू भी थम कर देख मुझे तसल्ली से ।

मैं कोई लम्हा नहीं जो गुज़र जाऊँगा,
जाओ मुझसे दूर, पास नज़र आऊंगा,
तोड़ कर दुनिया की सारी प्रीत, रस्म निभाऊंगा,
महसूस हो तन्हाई तो असर आऊंगा,
मैं कोई लम्हा नहीं जो गुज़र जाऊँगा ।

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