बहुत बेसब्र सी महसूस होने लगी है ज़िन्दगी,
अपने ही रंज से खोने लगी है ज़िन्दगी,
सांसें पेश्तर अब भी रहती है ढलते जिस्म में,
कभी-कभी नज़र-इ-नासूर होने लगी है ज़िन्दगी ।
बैचैन था, था परेशान,
बिखरते जज्बातों का था घमासान,
टूट रहा था अन्दर से,
और रूह थी परेशान,
बिखरते जज्बातों का था घमासान ।
अपने साए से भी डरने लगा हूँ,
तड़प-तड़प के यूँ मरने लगा हूँ,
पर मौत भी न नसीब मुझे,
तनहा यादों से भी लड़ने लगा हूँ ।
गहरे सन्नाटों में, चीखती आवाज़ों से,
मैंने, मेरी रूह का पता पूछा,
पर, जवाब कुछ भी न मिला,
ख़ाक के सिवा ।
अपने साए से भी डरने लगा हूँ,
तड़प-तड़प के यूँ मरने लगा हूँ,
पर मौत भी न नसीब मुझे,
तनहा यादों से भी लड़ने लगा हूँ ।
गहरे सन्नाटों में, चीखती आवाज़ों से,
मैंने, मेरी रूह का पता पूछा,
पर, जवाब कुछ भी न मिला,
ख़ाक के सिवा ।
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