थक गया हूँ खुद से तनहा लड़ते-लड़ते,
चैन से अब जी भर सोना चाहता हूँ ।
उसने वो चुना जो उसका अपना था,
और, मैंने वो खोया जो पाया ही नहीं ।
रहता कौन है यहाँ उम्र भर के लिए,
हमसफ़र बदलते रहते है रोज़ इस शहर में ।
था ही कब मेरा, जो "कश्मीर" हुआ,
सौदा मैंने किया और मैं ही "फ़कीर" हुआ ।
शायद, पतन का वक़्त नस्दीक है,
वरना, मेरी रूह को यूँ बेचैनी न होती ।
चैन से अब जी भर सोना चाहता हूँ ।
और, मैंने वो खोया जो पाया ही नहीं ।
हमसफ़र बदलते रहते है रोज़ इस शहर में ।
था ही कब मेरा, जो "कश्मीर" हुआ,
सौदा मैंने किया और मैं ही "फ़कीर" हुआ ।
शायद, पतन का वक़्त नस्दीक है,
वरना, मेरी रूह को यूँ बेचैनी न होती ।
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