वजूद…
क्यूँ मेरे ही वजूद की हस्ती खोने लगी,
क्यूँ रूह मेरी ज़ार-ज़ार हो रोने लगी,
क्या मौत चाहती है ज़िन्दगी,
अब ज़िन्दगी बोझ सी तनहा होने लगी ।
हफ़स, बात तेरी न थी,
फिर क्यूँ चुभन मुझे होने लगी,
क्या मौत चाहती है ज़िन्दगी,
जो अब, ज़िन्दगी बोझ सी तनहा होने लगी ।।
याद…
याद तेरी आने लगी,
लबों पर एहसास तेरा लाने लगी,
मैं, जागा ही था ख्यालों से,
और तेरे ख़्वाबों की नींद मुझे आने लगी,
लबों पर एहसास तेरा लाने लगी,
मुझे याद तेरी आने लगी ।
कल तक खामोश था खुद में,
आज, जान तुझमें समाने लगी,
राह तन्हा भी कोई,
पसंद मुझे आने लगी,
जागा ही था ख्यालों से,
तेरी नींद मुझे ख्वाबों में बुलाने लगी,
लबों पर एहसास तेरा लाने लगी,
तेरी याद मुझे आने लगी ।।
याद पुरानी आती है…
एक याद पुरानी आती है,
कुछ बात मुझे बताती है,
एक आस नयी जगाती है,
एक याद पुरानी आती है ।
एक किस्सा यार पुराना सा,
एक गुज़रा नया ज़माना सा,
एक बात नयी बताती है,
एक याद पुरानी आती है ।।
ख़्याल मिला…
एक उर्स मिला, एक ख़्याल मिला,
एक उलझा सा सवाल मिला,
किसी ने शायर कहा, तो किसी का मलाल मिला,
एक उर्स मिला, एक ख़्याल मिला,
एक उलझा सा सवाल मिला ।
कभी रेशम सा रुमाल मिला,
कभी करारा एक सवाल मिला,
क्यूँ लिखता हूँ मैं?
कभी ऐसा भी एक सवाल मिला,
किसी ने शायर कहा, तो कभी किसी का मलाल मिला,
एक उर्स मिला, एक ख़्याल मिला,
एक उलझा सा सवाल मिला ।।
कमाल था…
उनके ख़्याल में एक कमाल था,
जाने कैसा ये उलझा सवाल था,
मैं तन्हा हो कर भी तन्हा नहीं,
ये मौसकी थी या बस उनका कमाल था ।
वो आये और कब गुज़र गए,
इसका ता-उम्र मलाल था,
आशिक़ मैं भी हुआ अभिनव,
ये बस उनका कमाल था,
मैं तन्हा हो कर भी तन्हा नहीं,
ये मौसकी थी या बस उनका कमाल था ।।
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