झूठे चेहरों पर चलते है यहाँ रिश्ते,
हर कोई गमज़र्द है यहाँ किसी के गम में ।
कोई मिल ही जाएगा राह चलते,
इतना भी कमज़र्फ नहीं मेरा नसीब ।
वो, आये भी है और खो गए अंधेरों में,
मेरी रौशनी का सहारा भी तनहा सा मिला ।
आज, खुद की बदजुबानी से हारा हूँ मैं,
सोचता हूँ, जुबां से जीता क्या हूँ अब तक ।
बड़े बेमानी से हो गए है रिश्ते यहाँ,
जानते सब है, पहचानते नहीं ।
गम उसने दिए जो मेरा अपना था,
हम तो ख़ाक ही ग़ैरों को दुश्मन बनाए फिरते थे ।
और भी मंज़र है गुज़रे मुफलिस-ए-आलम के,
पर तू न गुज़रा, तेरी रूह न गुजरी ।
रोकते है मुझे कभी कभी,
पर हक नहीं जताते हम पर ।
फिर से महकने लगी है ज़िन्दगी तेरे आने के बाद,
मैं यह सोचता हूँ कि असर तेरा है या ज़िन्दगी का ।
इक प्यार ही तो है जो बांधे हुए है तुमसे,
वर्ना, मैं तो बंजारा हूँ उड़ता बादल सा ।
वो मेरे दिल की हसरतों को मेरी शायरी का सबब समझ लेते है,
कोई कह दे जा कर उनसे, ये शेर नहीं दिल-ए-हसरत है मेरी ।
वो क़त्ल भी करते है तो हँस-हँस कर,
हम-कफ़न न हो तो क्या चीज़ ।
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