Thursday, September 5, 2013

ख़्वाब-ए-मोहोब्बत…

कोई मजनू कहता…
क्या निकाले इस दिल से अब अभिनव,
खुद का पता आज-कल नहीं मिलता,
कोई मुफ़्लिस तो कोई मजनू कहता है,
और वो कहते है तुम में अभिनव नहीं मिलता ।

क्यूँ इतना दिल लगा बैठा हूँ,
क्यूँ खुद को तुझमे समां बैठा हूँ,
अब तो सांसें भी चलती है तेरे नाम से,
खुद को तुझमे इतना उतार बैठा हूँ ।

अरसा हुआ…
एक अरसा हुआ तुझे गुज़रे,
पर तेरे आने की इक उम्मीद अभी बाकी है,
हसरतें बहुत है दिल में,
तन्हाई में तेरी याद जागी है ।

मत करो हमें याद, बस एक बात दे दो,
बंद होने से पहले आँखों को ख़्वाब दे दो,
तन्हाई का मंज़र अब नहीं ढलता है,
इस डूबते अभिनव को लफ़्ज़ों की सांस दे दो ।

कब तक… 
कब तक राह तकते रहोगे उनकी,
वो वक़्त गुज़र गया है,
देखो बदली वादियों को,
समां भी सारा बदल गया है,
एक याद के सहारे ज़िन्दगी नहीं कटती अभिनव,
मंज़िल की चाह में वक़्त ही सारा बदल गया है ।

आतिश-ए-इश्क़ में वो भी फ़ना हुए,
जो हुसन को यूँ छुपाये फिरते थे,
और, फ़ना वो भी हुए,
जो नज़रें चुराए फिरते थे,
नसीब को दिल समझ बैठे है अभिनव,
ख़ाक वो भी हुए जो जिम्मा उठाये फिरते थे ।

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