Sunday, December 15, 2013

बीते है कई 16 दिसम्बर...

नशंस्त्रता की हद पार हो गयी,
एक और नारी जुर्म का शिकार हो गयी,
बीते है कई 16 दिसम्बर,
पर, ये ख़बर बार-बार हो गयी,
नाशंस्त्रता की हद पार हो गयी,
एक और नारी जुर्म की शिकार हो गयी ।

साल-दर-साल बीते,
पर, ये आफ़त कई बार हो गयी,
बस भूखे भेड़िये है शहर में,
नपुंसकता की भी हद पार हो गयी,
सरकारें कई है बदली,
पर शायद ये भी लाचार हो गयी,
आदत सी बन गयी है ऐसी ख़बरों की,
तो, निर्भया एक क्या हज़ार हो गयी,
अब शायद फ़र्क ही नहीं पड़ता अभिनव,
सबकी मानसिकता ही लाचार हो गयी,
एक और नारी जुर्म का शिकार हो गयी,
नाशंस्त्रता की हद पार हो गयी ।।

काश! कलम का जोर चलाता अभिनव,
तो, कुछ ताकतें कई हज़ार हो गयी,
अब, बेबस और मायूसी का मंज़र है शहर में,
मेरे मुल्क की आब-ओ-हवा भी बेकार हो गयी,
कोफ़्त और कुढ़न होती है खुद से,
दर्द की लहरें कई हज़ार हो गयी,
पर, आदत सी बन गयी है ऐसी ख़बरों की,
तो, निर्भया एक क्या हज़ार हो गयी,
नाशंस्त्रता की हद पार हो गयी,
एक और नारी जुर्म की शिकार हो गयी ।।।

Sunday, December 8, 2013

मोहोब्बत का सितम...

बड़े बेसब्र है ये दूरियों के पल,
काटे कटते ही नहीं इंतज़ार में ।

आँखें भी थक गयी है सुर्ख़ होते-होते,
पानी की तलाश में तनहा हो कर ।

कब तक आरज़ू लिए तकता रहूँ वक़्त के पहरों को,
कब से रुके है कमबख्त इक ही मोड़ पर ।

मेरे चेहरे पर इतनी पेशानियाँ न थी पहले,
शायद, वक़्त की झुर्रियाँ और सब्र के ज़ख्म नज़र आते है ।

बड़ी परेशां है रात आज,
गुज़रती ही नहीं मेरे कहने से ।

ओ रात के मुसाफ़िर हमको भी साथ ले-ले,
कुछ वक़्त तुझ संग ही काट लेगा अभिनव ।

पल न दे जुदाई के ए ख़ुदा,
खुद से दूरियां बर्दाश्त नहीं होती ।

उफ़ ये मोहोब्बत का सितम,
न आराम है, और न सुकून ।

आरज़ू-ए-इश्क़ की बस इतनी रज़ा हो,
कि, कोई पल न गुज़रे उसके बिना ।

कुछ ऐसी भी रंजिशें हुई मोहोब्बत की,
कि, कुछ अपनों की मोहोब्बत मुझसे रूठ गयी ।

Thursday, December 5, 2013

मैं भी कुछ ख़ास लिखूंगा...

मैं भी कुछ ख़ास लिखूंगा,
शायद कुछ आज लिखूंगा,
कल का एक राज़ लिखूंगा,
मैं भी कुछ ख़ास लिखूंगा ।

पढ़ कर दूजे की पंगती,
दिल का वो राज़ लिखूंगा,
जो समझा हूँ ज़िन्दगी का साज़,
वो ही मैं आज लिखूंगा,
दिल का एक राज़ लिखूंगा,
मैं भी कुछ ख़ास लिखूंगा ।।

हूँ अनपढ़ फिर भी एक बात लिखूंगा,
नहीं आता कुछ भी, 
अपने जीवन का साज़ लिखूंगा,
जो सीखा हूँ दूजो से कल तक,
वो ही मैं आज लिखूंगा,
मैं भी कुछ ख़ास लिखूंगा ।।।

मासूम सा एहसास...






















एक मासूम सा एहसास लिए फिरता हूँ,
शायद कुछ ख़ास लिए फिरता हूँ,
आसमां की परी है,
या आफ़त की छोटी पुड़िया लिए फिरता हूँ,
एक मासूम सा एहसास लिए फिरता हूँ,
शायद कुछ ख़ास लिए फिरता हूँ ।

तन से जुड़ी हो जैसे, ऐसा कुछ ख़ास लिए फिरता हूँ,
मौजूदगी नहीं है बावस्ता, फिर भी एहसास लिए फिरता हूँ,
मासूम सी छोटी उँगलियाँ, आँखों की चमक कुछ ख़ास लिए फिरता हूँ,
एक मासूम सा एहसास लिए फिरता हूँ,
शायद कुछ ख़ास लिए फिरता हूँ ।।

लिखता हूँ...

कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ,
जाने क्या-क्या सोच लिखता हूँ,
ख़्यालों का बोझ लिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।

उलझा हुआ एक ओझ दिखता हूँ,
चेहरों पर मैं रोज़ दिखता हूँ,
फिर भी एक खोज दिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।

परायों में सोच दिखता हूँ,
अपनों में एक खोज दिखता हूँ,
क़ब्र पर मैं रोज़ दिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।

दर्द को हर रोज़ लिखता हूँ,
फिर भी कम-कम सोच लिखता हूँ,
नाम मैं उसका खोज लिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।

सुबह मेरी...

बड़ी भारी थी सुबह मेरी,
आँखें थी सुर्ख़ लाल,
रात काली गुजरी थी,
या गुज़रा था हाल,
दिल टूटे कई,
खुद भी रहा बेहाल,
बड़ी भारी थी सुबह मेरी,
आँखें थी सुर्ख़ लाल ।

अजब कहानी थी मेरी,
चाह दिवानी थी मेरी,
पर गहरे घावों से बेहाल,
आँखें थी सुर्ख़ लाल,
बात छुपायी थी मैंने,
क्यूँ न बताई थी मैंने,
क्यूँ रहा बेहाल,
दर्द दिया हर-हाल,
रात काली गुजरी थी,
या गुज़रा था हाल,
बड़ी भारी थी सुबह मेरी,
आँखें थी लाल ।।

शाम...

गुज़र रहे है बादल, शाम भी ढल रही है,
हवाओं का मिजाज़ है बदला, कलम भी चल रही है,
सुर्ख़ियों में शोलों की नरमाई पिघल रही है,
चांदनी की घटा, संग-संग चल रही है,
मेरी रुमानियों की झलकियाँ सवर रही है,
हवाओं का मिजाज़ है बदला, कलम भी चल रही है ।

सब पूछेंगे आज, हिना में निखार क्यूँ है,
सच-सच बताओ सखी, इतना प्यार क्यूँ है,
कह देना उन्हें, कि उनकी ख्वाहिशों का रंग है चढ़ा,
शोखियाँ क्या बताये इतना प्यार क्यूँ है ।

हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ...





















चलो इकरार करता हूँ,
हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ,
सोचा था बस कुछ रोज़ करूँ,
अब रोज़ कई बार करता हूँ,
चलो इकरार करता हूँ,
हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ ।

एक दोस्त, प्रेमिका और अर्धांगिनी सा ऐतबार करता हूँ,
तेरी प्रीत की चाहत में दुनिया को दर-किनार करता हूँ,
साल दर साल बीते तुझ संग,
यही दुआ हर बार करता हूँ,
सोचा था कुछ रोज़ करूँ,
अब रोज़ कई बार करता हूँ,
चलो इकरार करता हूँ,
हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ ।

दिन पर दिन...

बहुत मतलबी हो गया हूँ तुझसे मिलने के बाद,
तेरे जाने के डर से रूह को तकलीफ़ होती है ।

दिन पर दिन तुझसे मोहोब्बत करते-करते,
कब आदत सी बन गयी ख़बर नहीं ।

बड़ी परेशां सी गुजरी है रात,
सोचता हूँ सुबह का हश्र क्या होगा ।

आज, फिर उसका दिल दुखाया है,
सोचता हूँ खुद को सजा क्या दूं ।

मंदिरों के बाहर एक कतार देखी है मैंने,
ज़िन्दगी की आस में हाँथ जोड़े खड़े रहते है ।

आधे अक्षर में पूरी मोहोब्बत की मैंने,
आधे, लफ़्ज़ों को लफ़्ज़ों में ही छोड़ा अभिनव ।

बड़े चेहरे बदलने पड़ते है वक़्त-दर-वक़्त,
टूट कर, एक ऐसा भी हुनर पाया हमने ।

बर्दाश्त की भी हद देखी है अभिनव,
हम पर भी इश्क़ का कुछ यूँ रंग चढ़ा ।

ख़्वाबों की भी बोलियाँ लगती है इस बाज़ार में,
आशिकों की फितरत कुछ ऐसी भी देखी है ।

बहुत दिनों बाद मुलाक़ात हुई तुझसे,
सोचता हूँ कुछ पल यूँ ही ठहर लूं ।

बड़ी गफ़लत है ज़िन्दगी,
तू पास भी है फिर भी एक दूरी है ।

पुरानी तस्वीरें देख कर गहराता है प्यार तेरा,
मैं ये सोचता हूँ कि कशिश तस्वीरों में है या प्यार में तेरे ।

इश्क़ के बाज़ार में सौदे भी अजीब किये मैंने,
कि, हर जगह बस दर्द का मुनाफ़ा हो गया ।

दिखता है चेहरा ही बाज़ार में,
यहाँ इश्क़ में दिल नहीं दिखा करते ।

बहुत टटोल कर हाल-ए-दिल ये जाना,
कि, मरते भी तुम पर, डरते भी तुम पर ।

मैंने देखे है बहुत से अभिनव,
पर देखा नहीं मुझसा साकी ।

ख़्वाबों की बुलंदियों पर उलझा कोई बाशिंदा है,
ख्वाहिशों की आस में सुलझा कोई नुमायिन्दा है,
चल तो रहा है वो, पर वजह क्या है,
ज़ख्म बहुत सारे है, पर सज़ा क्या है,

क्या अजब सा रिश्ता है तेरा-मेरा,
दूर हो के भी ख़ुशी और पास न हो के भी गम है ।

तलाश-ए-लफ्ज़ की शिरकत लिए चलते गए,
और कहते गए उनसे, चलो, मुकम्मल हुआ तो फिर मिलेंगे ।

क्यूँ मौजूद नहीं हूँ खुद में,
जाने कैसा ये खालीपन है ।

रूह सी कांप जाती है तेरे जाने के डर से,
सोचता हूँ, बिन तेरे ज़िन्दगी का हश्र क्या होगा ।

लफ्ज़ भी नहीं मिलते मुनासिब बिन तेरे,
कैसा ये तुझसे नाता जुड़ा है ।

ताज़गी सी लिए फिरता हूँ वक़्त-हर-वक़्त,
कुछ इस तरह तेरी रूह मेरे साथ होती है ।

ज़र्रा-ए-फ़राश से निकला है अभिनव,
मुझको, मातम की चीख़ों में ढ़ेर न कर ।

बहुत ख़ामोशी है शहर में,
शायद अन्दर उथल-पुथल है ।

बस खफ़ा हूँ शायद खुद से ही,
कि होता वही है जो चाहता नहीं ।

काँच के टुकड़ों सा बिखर गया हूँ मैं,
मेरे वजूद की कोई रिहाइश नहीं बाकी ।

कुछ यूँ ही...

संग-दिल हो कर, हमने भी देखे है ज़माने कई,
पर, कुछ भी नहीं ख़ाक के सिवा ।

एक खालीपन सा लिए फिरते रहा मैं,
ता-उम्र ज़िन्दगी ।

तलाश-ए-अक्स में शख्स की मौत हुई,
और, यूँ ही गुज़री बे-वजह ज़िन्दगी सारी ।

सब अकेले ही चलते है राहों में,
कोई साथी नहीं मेरा अभिनव ।

तुम भी रुक ही गए आख़िर,
एक वक़्त की नुमाइश ऐसी हुई ।

कहीं दूर चले जाना चाहता हूँ मैं,
जहाँ, मुझको मैं सुनाई न दूं ।

तमाशबीन से मिलते है मंज़र सारे,
बस मैं नहीं मिलता आज-कल ।

मेरे दर्द की नुमाईश कुछ हुई ऐसे,
कि, रो भी न सका और हँसता भी रहा अभिनव ।

नज़रें बदल गयी शायद मेरी,
आज, मैं ही नहीं मिलता भीड़ में अक्सर ।

ज़िन्दगी का क्या है, कट ही जाती है कटते-कटते,
बस साँसों की ये डोर ही नहीं कटती अभिनव ।

Monday, December 2, 2013

तेरी याद में जलता हूँ मैं...

एक डोर सा बंधा चलता हूँ मैं,
पल, हर पल पलता हूँ मैं,
जाने क्यूँ गलता हूँ मैं?
शायद, तेरी याद में जलता हूँ मैं ।

तू है, और नहीं भी,
तुझसे मिलने, को लक़ीरें मलता हूँ मैं,
खुश भी हूँ, और हूँ भी ख़फ़ा,
उसकी (खुदा) ख़ताओं को माफ़ करता हूँ मैं,
जाने क्यूँ गलता हूँ मैं,
शायद, तेरी याद में जलता हूँ मैं ॥

चेहरों से नफ़रत हो गयी,
क्यूँ तुझसे मोहोब्बत हो गयी,
तेरे होने का यक़ीन लिए चलता हूँ मैं,
तेरी खुशियों में ही दुनिया लिए चलता हूँ मैं,
फिर भी, जाने क्यूँ गलता हूँ मैं,
शायद, तेरी याद में जलता हूँ मैं ॥।