नशंस्त्रता की हद पार हो गयी,
एक और नारी जुर्म का शिकार हो गयी,
बीते है कई 16 दिसम्बर,
पर, ये ख़बर बार-बार हो गयी,
नाशंस्त्रता की हद पार हो गयी,
एक और नारी जुर्म की शिकार हो गयी ।
साल-दर-साल बीते,
पर, ये आफ़त कई बार हो गयी,
बस भूखे भेड़िये है शहर में,
नपुंसकता की भी हद पार हो गयी,
सरकारें कई है बदली,
पर शायद ये भी लाचार हो गयी,
आदत सी बन गयी है ऐसी ख़बरों की,
तो, निर्भया एक क्या हज़ार हो गयी,
अब शायद फ़र्क ही नहीं पड़ता अभिनव,
सबकी मानसिकता ही लाचार हो गयी,
एक और नारी जुर्म का शिकार हो गयी,
नाशंस्त्रता की हद पार हो गयी ।।
काश! कलम का जोर चलाता अभिनव,
तो, कुछ ताकतें कई हज़ार हो गयी,
अब, बेबस और मायूसी का मंज़र है शहर में,
मेरे मुल्क की आब-ओ-हवा भी बेकार हो गयी,
कोफ़्त और कुढ़न होती है खुद से,
दर्द की लहरें कई हज़ार हो गयी,
पर, आदत सी बन गयी है ऐसी ख़बरों की,
तो, निर्भया एक क्या हज़ार हो गयी,
नाशंस्त्रता की हद पार हो गयी,
एक और नारी जुर्म की शिकार हो गयी ।।।
एक और नारी जुर्म का शिकार हो गयी,
बीते है कई 16 दिसम्बर,
पर, ये ख़बर बार-बार हो गयी,
नाशंस्त्रता की हद पार हो गयी,
एक और नारी जुर्म की शिकार हो गयी ।
साल-दर-साल बीते,
पर, ये आफ़त कई बार हो गयी,
बस भूखे भेड़िये है शहर में,
नपुंसकता की भी हद पार हो गयी,
सरकारें कई है बदली,
पर शायद ये भी लाचार हो गयी,
आदत सी बन गयी है ऐसी ख़बरों की,
तो, निर्भया एक क्या हज़ार हो गयी,
अब शायद फ़र्क ही नहीं पड़ता अभिनव,
सबकी मानसिकता ही लाचार हो गयी,
एक और नारी जुर्म का शिकार हो गयी,
नाशंस्त्रता की हद पार हो गयी ।।
काश! कलम का जोर चलाता अभिनव,
तो, कुछ ताकतें कई हज़ार हो गयी,
अब, बेबस और मायूसी का मंज़र है शहर में,
मेरे मुल्क की आब-ओ-हवा भी बेकार हो गयी,
कोफ़्त और कुढ़न होती है खुद से,
दर्द की लहरें कई हज़ार हो गयी,
पर, आदत सी बन गयी है ऐसी ख़बरों की,
तो, निर्भया एक क्या हज़ार हो गयी,
नाशंस्त्रता की हद पार हो गयी,
एक और नारी जुर्म की शिकार हो गयी ।।।

