बड़े बेसब्र है ये दूरियों के पल,
काटे कटते ही नहीं इंतज़ार में ।
आँखें भी थक गयी है सुर्ख़ होते-होते,
पानी की तलाश में तनहा हो कर ।
कब तक आरज़ू लिए तकता रहूँ वक़्त के पहरों को,
कब से रुके है कमबख्त इक ही मोड़ पर ।
मेरे चेहरे पर इतनी पेशानियाँ न थी पहले,
शायद, वक़्त की झुर्रियाँ और सब्र के ज़ख्म नज़र आते है ।
बड़ी परेशां है रात आज,
गुज़रती ही नहीं मेरे कहने से ।
ओ रात के मुसाफ़िर हमको भी साथ ले-ले,
कुछ वक़्त तुझ संग ही काट लेगा अभिनव ।
पल न दे जुदाई के ए ख़ुदा,
खुद से दूरियां बर्दाश्त नहीं होती ।
उफ़ ये मोहोब्बत का सितम,
न आराम है, और न सुकून ।
आरज़ू-ए-इश्क़ की बस इतनी रज़ा हो,
कि, कोई पल न गुज़रे उसके बिना ।
कुछ ऐसी भी रंजिशें हुई मोहोब्बत की,
कि, कुछ अपनों की मोहोब्बत मुझसे रूठ गयी ।
काटे कटते ही नहीं इंतज़ार में ।
आँखें भी थक गयी है सुर्ख़ होते-होते,
पानी की तलाश में तनहा हो कर ।
कब तक आरज़ू लिए तकता रहूँ वक़्त के पहरों को,
कब से रुके है कमबख्त इक ही मोड़ पर ।
मेरे चेहरे पर इतनी पेशानियाँ न थी पहले,
शायद, वक़्त की झुर्रियाँ और सब्र के ज़ख्म नज़र आते है ।
बड़ी परेशां है रात आज,
गुज़रती ही नहीं मेरे कहने से ।
ओ रात के मुसाफ़िर हमको भी साथ ले-ले,
कुछ वक़्त तुझ संग ही काट लेगा अभिनव ।
पल न दे जुदाई के ए ख़ुदा,
खुद से दूरियां बर्दाश्त नहीं होती ।
उफ़ ये मोहोब्बत का सितम,
न आराम है, और न सुकून ।
आरज़ू-ए-इश्क़ की बस इतनी रज़ा हो,
कि, कोई पल न गुज़रे उसके बिना ।
कुछ ऐसी भी रंजिशें हुई मोहोब्बत की,
कि, कुछ अपनों की मोहोब्बत मुझसे रूठ गयी ।
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