कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ,
जाने क्या-क्या सोच लिखता हूँ,
ख़्यालों का बोझ लिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।
उलझा हुआ एक ओझ दिखता हूँ,
चेहरों पर मैं रोज़ दिखता हूँ,
फिर भी एक खोज दिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।
परायों में सोच दिखता हूँ,
अपनों में एक खोज दिखता हूँ,
क़ब्र पर मैं रोज़ दिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।
दर्द को हर रोज़ लिखता हूँ,
फिर भी कम-कम सोच लिखता हूँ,
नाम मैं उसका खोज लिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।
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