Thursday, December 5, 2013

सुबह मेरी...

बड़ी भारी थी सुबह मेरी,
आँखें थी सुर्ख़ लाल,
रात काली गुजरी थी,
या गुज़रा था हाल,
दिल टूटे कई,
खुद भी रहा बेहाल,
बड़ी भारी थी सुबह मेरी,
आँखें थी सुर्ख़ लाल ।

अजब कहानी थी मेरी,
चाह दिवानी थी मेरी,
पर गहरे घावों से बेहाल,
आँखें थी सुर्ख़ लाल,
बात छुपायी थी मैंने,
क्यूँ न बताई थी मैंने,
क्यूँ रहा बेहाल,
दर्द दिया हर-हाल,
रात काली गुजरी थी,
या गुज़रा था हाल,
बड़ी भारी थी सुबह मेरी,
आँखें थी लाल ।।

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