Thursday, December 5, 2013

शाम...

गुज़र रहे है बादल, शाम भी ढल रही है,
हवाओं का मिजाज़ है बदला, कलम भी चल रही है,
सुर्ख़ियों में शोलों की नरमाई पिघल रही है,
चांदनी की घटा, संग-संग चल रही है,
मेरी रुमानियों की झलकियाँ सवर रही है,
हवाओं का मिजाज़ है बदला, कलम भी चल रही है ।

सब पूछेंगे आज, हिना में निखार क्यूँ है,
सच-सच बताओ सखी, इतना प्यार क्यूँ है,
कह देना उन्हें, कि उनकी ख्वाहिशों का रंग है चढ़ा,
शोखियाँ क्या बताये इतना प्यार क्यूँ है ।

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